पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/६४८

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६१२ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय तुरन्त अपने हथियार वापस खींच लिये और सिर्फ एक ही शान्तिका हथियार चरखा -- - देश के सामने रख दिया। इसे देखकर पहले तो लोग हँसे, फिर तिरस्कार प्रकट करने लगे और अब उसका स्वागत करनेका समय आ रहा है। अब में विद्यार्थियोंसे कह रहा हूँ कि इसे अपनाओ । कांग्रेस में भी चरखेका प्रस्ताव हुआ और यदि लॉर्ड रीडिंगसे मिलने का अवसर आये तो अब मैं उनसे भी यही कहूँगा कि जनाब चरखा कातिए । यह सुनकर आपको हँसी आई, पर मैं गंभीरता के साथ कह रहा हूँ । मैं उन्हें यह कहते हुए जरा भी न हिचकूंगा और यदि वे न माने तो नुकसान उनकी है, मेरा बिलकुल नहीं। जो भिक्षा माँगता हो उसका क्या नुकसान होगा ? उसका तो वह धर्म ही है, पेशा ही है । मेरा यह धर्म है कि उनके सामने हाथ फैलाकर उन्हें पुण्य करनेका अवसर दूं । अच्छी से अच्छी चीज ग्रहण करनेका मौका उनके सामने उपस्थित करूँ। अगर वे उसे न अपनावें तो हानि उनकी होगी । कलकत्तेके बड़े पादरी साहब से मैंने अपनी भजन - मण्डली में बैठनेका अनुरोध किया। वे बैठे और उन्होंने भजन गाया । इससे उनके और मेरे बीच प्रेमकी गाँठ बँध गई। पर इतने से ही मुझे सन्तोष न हुआ । मैंने उनसे चरखेकी बात कही । कर्तल मैडॉकने मेरी जान बचानेके लिए मेरे पेटमें नश्तर लगाया । अनेक औजारों का प्रयोग किया। मैंने उनके सामने भी चरखेकी बात पेश की । श्रीमती मैडॉक जब विलायत जाने लगीं तो मैंने उन्हें खादीका तौलिया देकर चरखेका संदेश वहाँ भेजा। उन्होंने उसे प्रेमपूर्वक ग्रहण कर लिया और कह गई हैं कि मैं घर-घर इस तौलियेका सन्देश पहुँचाऊँगी | यह चीज बिलकुल निर्दोष है । इसमें स्वाद नहीं हो सकता । आरोग्यप्रद भोजन चटपटा और तेज नहीं होता । राजकोटमें एक हलवाई था; वह बहुत तेज भजिये बनाता था। उनमें बहुत तरहके मसाले डालता था और इन भजियोंके लिए सैकड़ों लोग उसी दुकानपर दौड़ते थे। लेकिन उनमें ऐसा कोई गुण तो था नहीं कि वे खानेवालेका आरोग्य-वर्धन कर सकें। अनेक चीजें ऐसी होती हैं जो नीरस मालूम होती हैं पर दरअसल होती सरस हैं। इसी कारण 'गीता' का यह महावचन है, 'जो बात आरम्भ में कड़वी परन्तु परिणाममें अमृतमय हो' उसे ग्रहण करो। ऐसी अमृतप्राय वस्तु सूतका तार है । आत्माको शान्ति देनेके लिए, विद्यार्थी कालमें जीवनको शान्ति देने के लिए, जीवन में धर्मको स्थान देनेके लिए, इसके सदृश सामर्थ्यवान् यज्ञ दूसरा नहीं है । हिन्दुस्तान के लिए मैं आज दूसरी चीज नहीं दे सकता -- गायत्रीको भी सारे हिन्दुस्तान के सामने पेश नहीं कर सकता। क्योंकि यह युग व्यावहारिक युग है, तत्काल परिणाम देखना चाहता है । मैं गायत्री जरूर उपस्थित कर सकता हूँ, पर तत्काल परिणाम क्या दिखाऊँगा ? पर चरखा ऐसी चीज है कि आप सूतका तार निकालते जाइए, रामका नाम लेते जाइए और आपको सब कुछ मिल जायेगा । ट्यूडर ओवन साहब यहाँ एक बड़े हाकिम थे। आज वे पंचमहालमें हैं। उन्हें मैंने अपनी पाँत में मिला लिया । उसका छुपा भेद में आज प्रकट करता हूँ । उन्होंने मुझे लिखा है कि चरखा मुझे बड़ा प्रिय हो गया है । मेरी अंग्रेजी 'कॉमनसेंस' ( व्यवहार-बुद्धि) कहती है कि वह मेरी बढ़िया 'हॉबी' (शौक) है । मैंने उनसे कहा कि आपके लिए यह 'हॉबी' होगी हमारे लिए तो यह कल्पद्रुम है । अंग्रेजी जीवन Gandhi Heritage Portal