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अध्यक्षीय भाषण: बेलगाँव कांग्रेसमें

दमन एक लक्षण है

इस दमनको मैं एक पुरानी बीमारीका एक पुराना लक्षण मानता हूँ। उसका सूत्र है यूरोपका प्रभुत्व और एशियाकी दासता। कभी-कभी तो इसे और भी व्यंजक शब्दावलीमें गोरे बनाम कालेका सवाल कहते हैं। जब किपलिंगने काले लोगोंके कंधोंपर डाले गोरोंके जुएको "गोरोंका बोझ" कहा तो उसने वास्तवमें स्थितिका गलत वर्णन किया। मलायामें रंगभेदकी दीवार अस्थायी समझी जाती थी पर वह अब करीब-करीब स्थायी बन गई है। मॉरिशसके गन्नेकी खेती करनेवालोंको हिन्दुस्तानसे मजदूर मिलने ही चाहिए। केनियाके यूरोपीय हिन्दुस्तानियोंपर हावी होने में कामयाब हो गये हैं, हालांकि हिन्दुस्तानी वहाँ रहनेका पहला हक रखते हैं। दक्षिण आफ्रिकाकी सरकार अगर सहूलियतसे कर सके तो वह आज ही वहाँसे एक-एक हिन्दुस्तानीको निकाल बाहर करे। पिछले करारनामोंकी वह कुछ भी परवाह न करे। यह बात नहीं कि इन तमाम बातोंमें भारत सरकार और सम्राज्य सरकारका कुछ बस न चल सकता हो; पर वे वहाँके हिन्दुस्तानी निवासियोंकी रक्षाके लिए या तो रजामन्द नहीं हैं या उतना जोर नहीं दे रहे हैं, जितना कि उन्हें देना चाहिए। भारत सरकारने तो फीजीवाले अपने कमीशनकी रिपोर्टतक प्रकाशित करनेकी शिष्टता नहीं दिखाई है।

अकालियोंके अदम्य तेजको कुचलनेका प्रयत्न भी उसी बीमारीका लक्षण है। जिस ध्येयको वे अपनी जानके बराबर प्यार करते हैं, उसके लिए उन्होंने पानीकी तरह अपना खून बहाया है। हो सकता है, उनसे गलतियाँ हुई हों। मगर ऐसा हुआ भी हो तो उसके लिए खून उन्हींका बहा है। उन्होंने किसी दूसरेको चोट नहीं पहुँचाई है। ननकाना साहब, गुरुका बाग और जैतों---उनके साहस, उनके मूक कष्ट-सहन और उनकी शहादतके साक्षी रहेंगे। लेकिन कहते हैं, पंजाबके गवर्नर साहबने कसम खाई है कि वे अकालियोंको कुचल कर रहेंगे।

सुननेमें आया है, उधर बर्मामें भी दमनचक्र चलाकर वहाँकी जनताको कुचला जा रहा है।

मिस्रकी हालत भी हमसे अच्छी नहीं है। एक पागल मिस्रवासीने एक अंग्रेज अफसरको कत्ल कर डाला---निश्चय ही यह एक जघन्य अपराध है। लेकिन इसकी जो सजा दी जा रही है वह सिर्फ एक जघन्य अपराध ही नहीं, बल्कि मानवताके साथ बलात्कार है। मिस्रने जो कुछ पाया था, करीब-करीब खो चुका है। सिर्फ एक आदमीके जुर्मके लिए सारी कौमको बेरहमीसे सजा दी गई है। हो सकता है कि उस खूनके साथ मिस्रवासियोंकी हमदर्दी रही हो। पर क्या इतनेसे ही उस ताकतके लिए इस तरह जोरोजुल्म करना उचित हो सकता है, जो उसके बिना भी अपने हितों की रक्षा कर सकती है।

इसलिए बंगालका यह दमन कोई असाधारण बात नहीं है। ऐसी हालत में, जबतक हमारा स्वत्व हमें प्राप्त नहीं हो जाता तबतक दमनके किसी-न-किसी रूपमें और किसी-न-किसी प्रान्तमें समय-समयपर होनेवाले ऐसे विस्फोटको एक साधारण बात समझकर ही चलना पड़ेगा।