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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इस कामके लिए अभी हमें बहुत थोड़े लोग मिलते हैं। लेकिन पाँचवें सुझावपर अमल करनेसे अवश्य ही हजारों स्त्री-पुरुष चरखा-शास्त्रमें पारंगत हो जायेंगे।

यदि हममें गरीबोंके प्रति तनिक भी दया भाव हो तो हम विदेशी कपड़ेको हाथ न लगायें और केवल हाथसे कती और बुनी खादीका ही उपयोग करें। नियमित रूपसे आधा घंटा सूत कातनेसे गरीबोंके साथ हमारा तादात्म्य निरन्तर बना रहता है और चूँकि ईश्वर हमेशा गरीबोंमें वास करता है, इसलिए इसके द्वारा ईश्वरसे भी हमारा सम्बन्ध स्थापित होता है। हम स्वराज्यकी जितनी कामना अपने लिए करते हैं, उतनी ही कामना यदि गरीबोंके लिए भी करते हों तो चरखा चलाना कांग्रेसमें शामिल होनेवाले प्रत्येक व्यक्तिका धर्म है। जब हजारों लोग चरखा चलाना अपना धर्म समझेंगे और उसका पालन करेंगे तब गरीब लोग भी अपनी कमाईमें बढ़ती करनेके लिए चरखा चलायेंगे। अनियमित रूपसे और अधूरे किये हुए बहुतसे कार्य निष्फल जाते हैं। केवल कातना ही एक ऐसा काम है जिसमें कोई हानि नहीं है। यह काम तो जितना कीजिए उतना ही फलदायी सिद्ध होता है। सूत तो जितना पाँच मिनटमें काता जा सकता है, उतनेको भी बेचा जा सकता है। लेकिन पाँच मिनटमें जितना कपड़ा बुना जा सकता है उतनेको नहीं बेचा जा सकता। यहीं बात पाँच मिनटमें धुनी रुईके साथ भी है। इसके अलावा यदि करोड़ों लोग बुनाई करें, तो सारे उत्पादनकी खपत नहीं हो सकती। जब करोड़ों लोग सूत कातेंगे, तभी जनताकी जरूरत पूरी होगी। यदि हजारों स्त्री-पुरुष धर्मार्थ सूत कातेंगे तो खादी महीन और सस्ती होगी। यदि ऐसा किया जाये तो छः मासके भीतर ही हमारे पास बारीक और अच्छा बटा सूत बड़ी मात्रामें इकट्ठा हो जाये।

इसपर कुछ लोग यह दलील दे सकते हैं कि यदि यह नियम रखा जायेगा कि केवल सूत कातनेवाले लोग ही कांग्रेस में शामिल हों तो कांग्रेससे बहुतसे लोग निकल जायेंगे। तथ्य तो यह है कि आज भी हमारे रजिस्टरोंमें बहुत कम लोगोंके नाम हैं। गुजरातमें अन्य प्रान्तोंकी अपेक्षा उनकी संख्या अधिक हो सकती है। लेकिन वहाँ भी बीस हजारसे कम सदस्य ही हैं। गुजरातमें ५० ताल्लुके हैं। इनमें से लगभग आधे ताल्लुकोंमें ऐसा एक भी व्यक्ति नहीं है, जिसका नाम हमारे रजिस्टरोंमें हो। मेरी मान्यता है कि अन्य प्रान्तोंकी हालत इससे ज्यादा खराब है। इसके अलावा इन नामोंका परिचय मात्र दो अवसरोंपर ही होता है। एक चार आना उगाहते समय और दूसरे मत लेते समय। उनसे कांग्रेस कमेटियाँ अन्य ठोस काम नहीं लेती। कांग्रेसके रजिस्टरोंमें हम जनता के सेवकोंके नामोंकी अपेक्षा रखते हैं। ऐसे सेवक ही कांग्रेसको जनसंस्थाका रूप दे सकते हैं। मान लीजिये कि हम कोई चन्दा लिए बिना अपने रजिस्टरोंमें चार करोड़ नाम दर्ज कर लें। किन्तु उसका क्या उपयोग हो सकता है? लेकिन कल्पना कीजिए कि इसके बदले हमारे रजिस्टरोंमें चार लाख कातनेवालोंके नाम दर्ज हों तो इन चार लाख लोगोंसे आध घंटेके श्रमका और थोड़ी-सी रुईका दान लेकर कांग्रेस जनताकी सेवा करनेवाली एक जोरदार संस्था बन सकती है। इन चार लाख लोगोंका प्रतिमास कांग्रेसके सम्पर्क में आना कोई छोटी-मोटी बात