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८७. पत्र: एक मित्रको

साबरमती
११ सितम्बर, १९२४

प्रिय मित्र,

महादेवने आपके दोनों पत्र मुझे दे दिये हैं। उनके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ। मुझे कोई भ्रम नहीं है। लिबरल दलवाले शामिल हों या न हों; स्वराज्यवादी लोग भी चाहें तो शामिल हों या अलग रहें; पर मुझे तो यही लगता है कि हम लोग आपस में एक-दूसरेसे असहयोग कर रहे हैं। हमें इससे बचना होगा। फिर बाकी सब अपने-आप ठीक हो जायेगा। पहले पत्रके बारेमें बस इतना ही कहना था।

अब दूसरे पत्र के बारेमें। मैंने बिलकुल स्पष्ट कर दिया है कि अगर [एकता के लिए] समर्पण करना है तो आपको अपनी ही प्रेरणासे करना होगा। मैं तो केवल अहिंसा से उद्भूत सिद्धान्त ही सुझा सकता हूँ। दास्ताने और देवधरने जुहू में बेशक बहुत-सी बातें कही थीं। मेरे ऊपर उन बातोंका असर भी पड़ा, लेकिन उस तरहका नहीं जैसी आपको आशंका है। उनकी बातचीतसे मैंने यही अनुमान लगाया कि सभी प्रमुख सदस्य अहिंसा या खद्दरके काममें पूरा विश्वास नहीं रखते। श्री बापटका ही उदाहरण लीजिए। उन्होंने मूलशीपेटा आन्दोलन का[१] नेतृत्व किया था। मैंने सत्याग्रहके सम्बन्ध में उनकी पुस्तिका पढ़ी है। अहिंसा में उनका कोई विश्वास नहीं। श्री निम्बकरको लीजिए तो वे भी अहिंसा में विश्वास नहीं रखते। मैंने उनके भाषण सुने हैं और उनके लेख भी पढ़े हैं। उनके खिलाफ बार-बार शिकायतें आती रही हैं। लेकिन ये मामले ऐसे हैं कि इनमें अन्दरसे सुधारकी जरूरत है, हमारे समर्पणकी नहीं। समर्पणका विचार तो अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीकी बैठकके काफी बादकी चीज है। यह विचार तो मेरे मनमें तब आया जबकि मैंने कुछ जहरीले लेख पढ़े। अगर हम सब फरिश्ते होते तब भी मैं सबको समर्पणकी ही सलाह देता। अपने सिद्धान्तपर आग्रह करनेका मतलब ही यह है कि हम पदोंका त्याग कर रहे हैं, सिद्धान्तोंका नहीं। सिद्धान्तोंका तो हमें अपने जीवनमें आचरण करना ही है। यद्यपि सत्याग्रहके राजनीतिक परिणाम भी निकलते हैं, फिर भी वह शुद्ध आध्यात्मिक अवधारणा ही है। उसका सार है मानवीयता। यह बहस-मुबाहिसेकी चीज नहीं है। यदि आपका आचरण ठीक है तो यह आपके विरोधीपर अज्ञात रूपसे प्रभाव जमाता रहता है। आप पद-त्याग करेंगे भी तो इसीलिए कि आप पहलेसे कहीं अधिक अच्छा काम कर सकें। यह तरीका सामान्य तरीकोंसे सर्वथा भिन्न है। मैं अपनी भाषाको जान-बूझकर अस्पष्ट नहीं बना रहा हूँ। बात यह है कि मैं जो कुछ सोचता हूँ, वह मौलिक है,

  1. देखिए खण्ड २०, पृष्ठ ६६-६७।