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जेलके अनुभव-५

कि मैं अन्यायके विरुद्ध लड़ता नहीं था। इसके विपरीत, मेरे दक्षिण आफ्रिकाकी जेलोंके अनुभव-ऐसे अन्यायोंके विरुद्ध सतत संघर्षकी कहानी हैं। इनमें से अधिकांश संघर्ष में मैं सफल भी रहा। भारतको जेलोंमें अधिक लम्बे अरसे तक रहनेके फलस्वरूप मेरे चित्तपर तो अहिंसात्मक आचरणका सत्य और सौन्दर्य और भी गहराईसे अंकित हो गया है। यरवदा जेलके अधिकारियोंके साथ कटुता पैदा करना मेरे लिए बहुत ही आसान था। उदाहरणके लिए जब सुपरिटेंडेंटने वे अपमानजनक बातें कही थीं, जिनका वर्णन मैंने हकीम साहबको लिखे पत्रमें किया है, उस समय चाहता तो मैं भी उतना ही तीखा जवाब दे सकता था। परन्तु वैसा करके तो मैं अपनी ही नजरमें हलका हो जाता और सुपरिटेंडेंटके इस सन्देहको भी पक्का बना देता कि मैं एक झगड़ालू और शरारती राजनीतिज्ञ हूँ। किन्तु, हकीम साहबवाले पत्रमें वर्णित अनुभव तो उसके बाद जो घटनाएँ होनेवाली थीं उनकी तुलनामें नगण्य ही थे। उनमें से कुछ घटनाओंका मैं यहाँ वर्णन कर रहा हूँ।

मुझे मालूम था कि एक गोरा वार्डर मुझे सन्देहकी दृष्टिसे देखता है। प्रत्येक कैदीपर शक करना वह अपना फर्ज मानता था चूँकि मैं सुपरिटेंडेंटकी जानकारीके बिना छोटेसे-छोटे काम भी नहीं करना चाहता था, इसलिए मैंने उनसे कह रखा था कि अगर सामनेसे जानेवाला कोई कैदी मुझे सलाम करेगा तो जवाबमें मैं भी उसे सलाम करूँगा। मैंने उन्हें यह भी बता दिया था कि मेरे खानेके बाद जो खुराक बचती है वह सब मैं अपनी देख-रेख करनेवाले कैदी वार्डरको दे देता हूँ। वह गोरा वार्डर सुपरिटेंडेंटके साथ हुई मेरी इस बातके बारेमें कुछ भी नहीं जानता था। एक बार उसने किसी कैदीको मुझे सलाम करते देखा। जवाबमें मैंने भी उसे सलाम किया। उसने हम दोनोंको यह काम करते देखा था, लेकिन उसने टिकट उस कैदीसे ही लिया। इसका अर्थ यह था कि उस बेचारेके बारेमें रिपोर्ट की जायेगी। मैंने तुरन्त उस वार्डरसे कहा कि आप मेरे बारेमें भी रिपोर्ट करें, क्योंकि मैंने भी उस बेचारे कैदीकी तरह ही अपराध किया है। उसने मुझसे सिर्फ इतना ही कहा कि मैं तो अपना फर्ज अदा कर रहा हूँ। गोरे वार्डरकी इस अनधिकार चेष्टाके लिए मैंने उसके विरुद्ध कोई रिपोर्ट नहीं की। इसके बजाय सुपरिटेंडेंटसे मिलने पर सिर्फ उस कैदी भाईको बचाने के खयालसे मैंने उनसे उसके और मेरे बीच हुई सलाम-बन्दगीकी ही बात कही और उस वार्डरके साथ मेरी जो बातचीत हुई थी उसका कोई जिक्र नहीं किया। इससे वार्डर समझ गया कि उसके लिए मेरे दिलमें कोई बुराई नहीं है। उस दिनसे उसने मुझपर सन्देह करना छोड़ दिया; इतना ही नहीं, वह मेरे प्रति बड़ा मित्र-भाव रखने लगा।

सब कैदियोंकी तरह मेरी भी रोज तलाशी ली जाती थी, इसपर मैंने कभी आपत्ति नहीं की। महीनों तक रोज शामको कैदियोंको बन्द करनेसे पहले नियमित रूपसे मेरी तलाशी ली जाती रही। इस मौकेपर कभी-कभी एक जेलर आता था, जो बहुत ज्यादा उद्धत था। मेरे शरीरपर मेरे कच्छके सिवा और कुछ रहता नहीं

१. देखिए, खण्ड २३, पृष्ठ १३९-१४६।