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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उसकी आवश्यकताएँ कमसे-कम कीमतपर बाहरी देशोंसे पूरी होती रहें। मुक्त व्यापारने तो भारतके किसानोंको बरबाद ही कर दिया है, क्योंकि उससे यहाँके गृहउद्योग बिलकुल नष्ट ही हो गये हैं और फिर संरक्षणके बिना कोई भी नया व्यापार विदेशी व्यापारसे स्पर्धामें टिक नहीं सकता। नेटालने अपने चीनी-उद्योगको राज्यकी ओरसे काफी बड़ी सहायता देकर और आयातपर भारी कर लगाकर खड़ा किया था। जर्मनीने भी अपने उद्योगपतियोंको बहुत पैसा देकर चुकन्दरसे चीनी तैयार करने के उद्योगका विकास किया था। मैं तो मिल उद्योगको संरक्षण देनेका सदा ही स्वागत करने को तैयार हूँ, हालाँकि मै प्राथमिकता हाथसे तैयार किये गये खद्दरको ही देता हूँ और आगे भी देता रहूँगा। सच तो यह है कि मैं हर उपयोगी उद्योगको संरक्षण देना चाहूँगा। अगर मैं देखू कि सरकार भारतके आर्थिक और नैतिक कल्याणके लिए सचमुच उत्सुक है तो बहुत हदतक उसके प्रति मेरा विरोध समाप्त हो जायेगा। मैं तो चाहता हूँ कि सरकार वस्त्र उद्योगको यहाँतक संरक्षण देकर दिखाये कि यहाँके बाजारोंमें विदेशी कपड़ेका आना बिलकुल बन्द हो जाये। वह अपनी जरूरतके लिए खद्दर ही खरीदे और इस तरह चरखेको लोकप्रिय बनाकर दिखाये। वह राजस्वकी परवाह किये बिना शराब, अफीम आदि मादक द्रव्योंका उपयोग बन्द करके दिखाये और इस तरह राजस्वमें जो कमी हो उसे सेनापर खर्च कम करके पूरा करे। जब ऐसी शुभ घड़ी आयेगी तो मेरे विरोधमें कोई तथ्य नहीं रह जायेगा। इससे सुधारोंपर विचार-विमर्श करनेकी ठीक भूमिका तैयार हो जायेगी। अगर सरकार ये दोनों काम कर डाले तो वह मेरे लेखे उसके हृदय-परिवर्तनका स्पष्ट लक्षण होगा। किसी भी सम्मानपूर्ण समझौतेके लिए ऐसा हृदय-परिवर्तन आवश्यक है।

पूर्ण विराम

मौलाना मुहम्मद अलीने हिन्दुओं और मुसलमानोंके धार्मिक विश्वासोंकी जो तुलना की है, उसके सम्बन्धमें मुझे अनेक पत्र मिले हैं। इन पत्र-लेखकोंने बड़ी ही काबलियतके साथ अपनी बातें कही हैं। इन पत्र-लेखकोंका कहना कुछ भी हो, मैं तो अब भी यही मानता हूँ कि मौलाना साहबने इसके अलावा और कुछ नहीं किया कि दोनों धर्मोंकी तुलना करके उन्होंने मेरे धर्मके मुकाबले अपने धर्मको अधिक ऊँचा बताया है। मेरे सामने जो पत्र हैं, उनमें से कुछ बहुत ही सारगर्भित, तथ्यपूर्ण और दिलचस्प हैं। फिर भी मुझे उन्हें छापनेका लोभ संवरण करना ही पड़ेगा। धार्मिक चर्चा और यहाँतक कि दर्शन शास्त्रीय चर्चासे कहीं बड़े-बड़े अन्य काम देशके सामने पड़े हुए हैं। मौलाना साहबके मतकी सफाई में ‘यंग इंडिया' का इतना स्थान घेरनेके पीछे मेरा मंशा सिर्फ यही है कि अभी हिन्दुओं और मुसलमानोंके बीच जो कटुता है, उसे अगर हो सके तो व्यर्थ ही और बढ़नेसे रोकू। सिर्फ एक मित्रके लिहाजसे इस सार्वजनिक पत्रका उपयोग मौलाना साहबकी सफाई देने के लिए तो मैं कदापि न करता। इन पत्रोंको पढ़ लेने के बाद भी मुझे उनमें से ऐसा कुछ नहीं दिखाई देता,

१. देखिए खण्ड २३, पृष्ठ ५१३-१५।