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२५. पत्र: वा० गो० देसाईको

वैशाख सुदी १० [१४ मई, १९२४]

भाईश्री ५ वालजी,

लेख मिला। सुझावोंपर अमल कराऊँगा। मैंने लेखमें एक स्थानपर ‘इंडियन' शब्द जोड़ा है। मैं उसमें से निरामिष भोजन विषयक अंश निकाले दे रहा हूँ। आसन्न स्वराज्यमें सभी लोग निरामिषभोजी हो जायेंगे, ऐसा खयाल करना भूल है। चूंकि ठाकुरकी कविताका अंग्रेजी रूपान्तर तुमने दे दिया है, इसलिए मैं उसके गुजराती रूपान्तरका अर्थ ‘यंग इंडिया' में नहीं दूँगा। यदि मैं तुम्हारे लेखका गुजराती अनुवाद कराऊँगा तो उसे उसमें सम्मिलित कर लूँगा। तुम दोनोंके बीच जो आश्चर्यजनक घटनाएँ घटित हो रही हैं उनपर मुझे अचरज नहीं है, क्योंकि तुम दोनों ही अचरजके पिटारे हो। मैं दिल्लीतक तो पहुँच गया था परन्तु उससे आगे गाड़ी कैसे बढ़ा सकता था। मैंने भाई अभेचन्दको पत्र लिखा है।

मोहनदासके वन्देमातरम्

[पुनश्चः]

आनन्दशंकर के बारे में जो पत्र आया था, वह मैंने पढ़ने के बाद फाड़ दिया था।

मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ६००५) से।

सौजन्य: वालजी गो० देसाई

२६. टिप्पणियाँ

मुक्त व्यापार बनाम संरक्षण

टाटा स्टील वर्क्सको संरक्षण देने की बात सोची जा रही है। मुझसे उस संरक्षणके सम्बन्ध में अपने विचार व्यक्त करनेको कहा गया है। मैं नहीं जानता कि इस समय इससे क्या लाभ हो सकता है। मुझे यह भी मालूम नहीं कि इस स्टील वर्क्स से सम्बन्धित प्रस्तावके गुणदोष क्या है? लेकिन मैं यहाँ यह भ्रम अवश्य दूर करना चाहूँगा कि मैं पूँजीपतियोंके खिलाफ हूँ और यदि मेरा बस चला तो मैं मशीनों और मशीनोंसे होनेवाले उत्पादन दोनों ही को नष्ट कर दूँगा। सच तो यह है कि मैं एक पक्का संरक्षणवादी हूँ। मुक्त व्यापार इंग्लैंडके लिए अच्छा हो सकता है, क्योंकि वह अपना तैयार माल असहाय लोगोंपर थोप देता है और चाहता है कि

१. डाकखानेकी मुहरके अनुसार।

२. रवीन्द्रनाथ ठाकुर।