पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 24.pdf/५८०

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५५०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अतः बड़े लोग जैसा करते हैं वैसा ही छोटे करते हैं, 'गीता' के इस न्यायके अनुसार शिक्षक जैसा करेंगे वैसा ही उनके शिष्य करेंगे। इस तरह लोगोंको सहज शिक्षकों ही और शिष्योंकी ओरसे एक भारी भेंट मिलेगी ।

छुआछूत दूसरी कसौटी है । यदि शिक्षकोंमें आत्मबल होगा तो वे अपनी पाठ-शालाओंमें अन्त्यजोंको जरूर आकर्षित करेंगे। यदि इससे पाठशाला टूट जाये तो चिन्ता नहीं । पाठशाला धर्मके लिए है, धर्म पाठशालाके लिए नहीं है । यदि बालकोंको अस्पृश्यता छोड़ देनेका पदार्थपाठ न दिया जाये तो फिर क्या दिया जायेगा । यदि बच्चोंके माँ-बाप कहें कि हमारे लड़केको सत्यकी शिक्षा अधिक न दें; क्योंकि सत्याचरणी होनेसे वे व्यापारके लायक नहीं रहेंगे तो शिक्षक क्या कहेगा ? क्या वह उन बालकोंको त्याग न देगा ? सत्य-हीन इतिहास भूगोल और अंकगणितसे क्या लाभ होगा ? इसी प्रकार शिक्षक अपने गाँवोंके मुसलमानों, पारसियों तथा इतर जातियोंके बालकोंको भी पाठशाला में भेजने के लिए जरूर उनके माँ-बापसे अनुरोध करें ।

यदि शिक्षक आजीविकाको भूलकर शिक्षादानके अपने कर्त्तव्यको ही याद रखें तो पाठशालाओंमें नवीन चैतन्य दिखलाई देने लगे और वे सच्चे अर्थ में राष्ट्रीय हो जायें । राष्ट्रीय हलचलमें उनका उपयोग उसी हालतमें हो सकता है। हमने जिस बातको अंगीकार किया है उसके प्रति निष्ठावान बने रहना तो बालक, वृद्ध और स्त्री-पुरुष सबके लिए पहला पाठ है ।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, १०-८-१९२४

२९६. टिप्पणियाँ

हिमालयकी महिमा

हिमालय में रहनेसे तन्दुरुस्ती सुधर जाती है, इसे केवल अंग्रेजोंने जाना या खोजा हो सो नहीं है । हिमालयकी महिमा प्राचीन ग्रन्थोंमें भी गाई गई है । यह दिखाने के लिए एक मित्रने आयुर्वेद में हिमालयकी जो स्तुति की गई है उसका अनुवाद[१] करके भेजा है । आशा है, वह पाठकोंको रुचेगा ।

इन वाक्योंको पढ़ते हुए यह भाव किसके मनमें उदित नहीं होगा कि जब वे लिखे गये थे तब हमारे पूर्वजोंका जीवन अवश्य ही काव्यमय रहा होगा । इसमें उन्होंने अति सीधी-सादी बातको अलंकारोंसे सजाकर माधुर्यपूर्ण बना दिया है। वे ऐसा कर सकते थे; क्योंकि उस समय लोगोंको सन्तोष था । हिन्दुस्तान तब अपेक्षाकृत सुखी था। यहाँ गरीब भी भूखों नहीं मरते थे। तब भारत स्वावलम्बी था । क्या यहाँ ऐसा समय फिर न आयेगा ? वैद्य सच्चे बनें; हम भी सच्चे बनें तभी ऐसा समय फिर आ सकता है । वैद्य स्वयं हिमालय में जाकर नवस्फूर्ति प्राप्त करें, प्रामाणिक बनें, औषधियोंकी खोज करें और हमें पुण्यार्थ प्रदान करें। आज तो वैद्य

  1. १. यहाँ नहीं दिया गया है।