शक्तिको येन-केन-प्रकारेण दृढ़ करनेमें लगी है। हम उसे दोष नहीं दे सकते। यह उसके लिए सर्वथा स्वाभाविक है। मानहानिके इन अभियोगोंका उद्देश्य यह है कि भारतीय पत्रकार आदर्शच्युत हो जायें तथा खुली आलोचना करते हुए जरूरतसे ज्यादा सतर्क रहें और दब्बू बन जायें। मुझे अनुत्तरदायित्वपूर्ण अथवा अनुचित रूपसे की गई तीव्र आलोचना कतई पसन्द नहीं है । किन्तु इस तरहकी सतर्कता तभी लाभदायी हो सकती है जब वह भीतरसे उचित हो, बाहरसे न लादी गई हो ।
मेरे दिमाग में एक बात बिलकुल स्पष्ट है। यह ठीक है कि हमें राजनीतिक तथा धार्मिक मतभेदोंके कारण पराजय मिली है; किन्तु हमारी परेशानियोंका लाभ उठाने तथा सरकारी अधिकारियों के सार्वजनिक व्यवहारकी द्वेषहीन आलोचनापर सम्पादकों-को दण्ड देने के उद्देश्यसे सम्बन्धित अधिकारियोंको मानहानिके अभियोग चलानेके लिए प्रोत्साहित करके या उन्हें उसकी अनुमति देकर सरकारने हमसे भी अधिक खोया है । हो सकता है कि हम इतने कमजोर हों कि फिलहाल इसका कोई प्रतिकार न कर सकें; किन्तु हमारी कमजोरीका लाभ उठानेकी दृष्टिसे सरकार द्वारा किये जाने-वाले प्रत्येक कार्य तथा प्रत्येक अनुचित प्रहारसे हमारा विरोध और भी लागू हो जायेगा । हमारी यह असमर्थता थोड़े ही दिनोंकी है। हमारे विरोधका अन्त हो तो वह उसी दिन होगा जिस दिन हमारी दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितिको सम्भव बनानेवाली इस सरकारका अन्त होगा ।
यंग इंडिया, ७-८-१९२४
२८४. शिक्षकोंकी परिषद्
गुजरात विद्यापीठकी राष्ट्रीय पाठशालाओंमें इस समय लगभग ३०,००० विद्यार्थी हैं और उन्हें पढ़ाने के लिए ८०० से अधिक शिक्षक हैं। विद्यापीठके अधीन लगभग १४० संस्थाएँ हैं, जिनमें दो कालेज हैं और एक पुरातत्त्व अनुसन्धान संस्था है । उक्त संस्थाओंमें तेरह उच्च विद्यालय, १५ माध्यमिक विद्यालय और विशेष रूपसे अन्त्यजों- के लिए १५ विद्यालय भी शामिल हैं । अन्त्यजोंके विद्यालयोंमें ३०० से अधिक लड़के और लड़कियाँ पढ़ती हैं । सब संस्थाओंमें मिलाकर लड़कियोंकी संख्या ५०० से अधिक नहीं है। विद्यापीठने जमीनका टुकड़ा ले लिया है और उसमें एक सुन्दर-सा छात्रा-वास बनवा लिया है। जबतक पढ़ाने के लिए अलग भवन नहीं बन जाता तबतक इस छात्रावासका उपयोग अध्यापन कार्यके लिए भी किया जायेगा। उक्त ब्यौरेमें वे राष्ट्रीय पाठशालाएँ शामिल नहीं हैं जो विद्यापीठसे सम्बद्ध नहीं हैं । यह ब्योरा इस दिशामें की गई प्रगतिकी चरम सीमाका द्योतक भी नहीं है । सर्वाधिक प्रगति बिन्दु तो १९२१ में आ चुका था । तबसे बहुत से स्कूल बन्द हो चुके हैं और सम्भव है, आगे चलकर और भी स्कूल बन्द हो जायें । राष्ट्रीय पाठशालाओंमें पढ़नेवाले विद्यार्थियोंकी संख्या भी कुछ बढ़ नहीं रही है ? अन्य सभी प्रान्तोंकी तरह गुजरातमें भी सामान्य कांग्रेस जनोंके उत्साहमें शिथिलता आ गई है ।