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१३. पत्र: महादेव देसाईको

[११ मई, १९२४ के पूर्व][१]

उतावला काठियावाड़
आगामी परिषद्
अन्त्यज परिषद्
सत्याग्रह-शिविरमें भ्रष्टता
एक नम्र सेवकसे
बोहरोंका डर
ईद मुबारक
जाति सुधार
भाईश्री ५ महादेव,

ऊपर लिखे शीर्षकोंके लेख भेज रहा हूँ। अब कल कुछ भेजनेका विचार नहीं है। “सत्याग्रह-शिविरमें भ्रष्टता” लेखको वल्लभभाई देख लें। यदि वे इसे पसन्द न करें अथवा यह तुम्हें ठीक न लगे तो मत छापना।[२] यदि यह छापने योग्य न लगे तो भी मामले की जाँच पड़ताल कर लेना। आरोप भयंकर है। स्वामीसे[३] कहना कि मैंने “सत्याग्रहका इतिहास" की नौ गैलियोंका प्रूफ देख लिया था और रविवारको दोपहरकी डाकसे वापस भी भेज दिया था। ये गैलियाँ तुमको सोमवारको मिल जानी थीं। जो मनुष्य डाक लेकर गया था उसने गफलत की हो तो नहीं कह सकता। यदि न मिली हों तो तार देना। यदि मिल गई हों और लिफाफा रख छोड़ा हो तो उसपर लगी डाकखानेकी मुहरकी तारीख ध्यानसे देख लेना। वह अनाविल गाय[४] बच गई या कसाईको सौंप दी गई?

बापूके आशीर्वाद


[पुनश्च :]

स्वामीसे कहना कि जिस प्रकार मैं उसके बारेमें फिक्र नहीं करता उसी तरह मेरे बारे में वह चिन्ता न किया करे। मुझे जितनी सहायता या सुविधाकी आवश्यकता होगी, माँग लूँगा। थोड़ी-बहुत बकझक तो जरूर करूँगा। आदमी जैसे-जैसे बूढ़ा होता है, अधिकाधिक बकझक करने लगता है।

मूल गुजराती पत्र (एस० एन० ८७९७) की फोटो-नकलसे।

 
  1. इस पत्रके साथ भेजे गये सातों लेख ११-५-१९२४ के नवजीवनमें प्रकाशित हुए थे।
  2. यह लेख प्रकाशित नहीं किया गया था।
  3. स्वामी आनन्द।
  4. देखिए खण्ड २३, पृष्ठ ५६०।