२६२. टिप्पणियाँ
दुःखी मलाबार
पिछले सप्ताह मैंने दक्षिण कनाराकी बाढ़का उल्लेख किया था । इस सप्ताह जनताको यह दुखदायी समाचार मिला है कि मलाबार प्रायः पानी में डूब गया है । मेरे पास श्री नम्बूद्रीपादका तार भी आया है, जिसमें उन्होंने बाढ़ से हुए भारी नुकसानका विस्तारसे वर्णन किया है और मुझसे सहायता मांगी है। किन्तु मुझे यह मामला गैर-सरकारी साधनों के सामर्थ्य से परे मालूम होता है। कांग्रेसके पास न तो इतना धन है, न इतना प्रभाव और न ऐसा संगठन ही कि वह उस महान् संकटसे निपट सके, जिसका सामना इस समय मलाबारको करना है। इस समय अत्यन्त नम्रतापूर्वक अपने साधनों की अल्पताको स्वीकार करना हमारे लिए सर्वोत्तम होगा । जरूरत हो तो मैं सरकारी अधिकारियों द्वारा नियुक्त किसी समिति के माध्यम से संकटग्रस्त लोगोंकी सहायता करनेमें भी संकोच नहीं करूँगा । अलबत्ता वे हमारी सहायता स्वीकार करें। यदि हमें यह मालूम हो कि उन्हें हमारी सेवा ग्राह्य नहीं है अथवा सरकारी सहायता संगठन दिखावा मात्र है, तो मैं उस समिति में सम्मिलित नहीं होऊँगा और सामर्थ्य-भर निजी एवं व्यक्तिगत रूपसे सहायता करूँगा । भगवान् मझे सामर्थ्यके अभाव के लिए नहीं बल्कि इच्छाके अभाव के लिए दण्ड देंगे । अतः मैं स्थानीय कार्य-कर्त्ताओंको सलाह देना चाहता हूँ कि वे अपने सामर्थ्य के अनुसार कार्य करनेमें कुछ उठा न रखें और लोगोंके कष्ट दूर करनेका कोई भी अवसर हाथसे न जाने दें । आखिर ऐसे मौकोंपर पैसा कोई ज्यादा काम नहीं करता । व्यक्तिगत सद्भाव, कष्ट-पीड़ित लोगों के लिए कष्ट भोगनेकी तत्परता और संकटग्रस्त पड़ोसियोंके साथ अपने भोजन के अन्तिम ग्रास तकको बाँटकर खानेकी तैयारी –- ये ऐसी बातें हैं, जिनका महत्त्व लाखों रुपयोंकी अपेक्षा ज्यादा होता है । महाराज युधिष्ठिरने एक महायज्ञ किया था जिसमें उन्होंने सोनेकी मुहरें दक्षिणामें दी थीं; किन्तु उनके पुण्यसे उस ब्राह्मणके त्यागका पुण्य कई गुना अधिक था जिसने अपने थोड़ेसे भोजन में से भी संकटग्रस्त अतिथिको भोजन कराया था ।
एस० वी० के० से
आपके प्रश्नों का उत्तर देनेमें विलम्ब हो गया। मुझे इसके लिए आपसे अवश्य ही क्षमा-याचना करनी चाहिए। उत्तर इस प्रकार हैं :
(१) १९१७ की[१] मिलोंकी हड़तालके सम्बन्ध में किया गया मेरा अहमदाबादका उपवास अपने 'सहयोगियों' -- मिल मजदूरों--के विरुद्ध था, मालिकों, 'अत्याचारियों'-- के विरुद्ध नहीं । मैंने उस समय यह स्पष्ट रूपसे कह दिया था कि मेरा उपवास निर्दोष नहीं है, क्योंकि उसका प्रभाव निश्चय ही मिल मालिकोंपर भी पड़ेगा, जो
- २४-३१
- ↑ १. यहाँ १९१८ होना चाहिए; देखिए खण्ड १४, पृष्ठ २४३ ।