धुनाई, कताई, बुनाई इत्यादिके विषयमें अभी बहुत-कुछ करना बाकी है। मेरे विचारसे यदि सम्मेलन इस दिशामें कुछ करता है तो यही माना जायेगा कि उसने धोलका तथा भारत दोनोंको कीर्तिमें वृद्धि की है।
मैं यह माने लेता हूँ कि धोलकामें कोई अस्पृश्य माना जानेवाला मनुष्य है ही नहीं और वहाँके हिन्दू और मुसलमान भाई-भाईकी तरह रह रहे हैं।"
मै तो बोरसद भी नहीं जा रहा हूँ। फिर आपके यहाँ कैसे आ सकता हूँ?
श्री डाह्याभाई पटेल
ताल्लुका समिति
धोलका
गांधीजी के स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० २६८८) से।
सौजन्य: डा० एम० पटेल
९. पत्र: देवचन्द पारेखको
भाईश्री,
आपका पत्र मिला। मैंने आपसे यह बात जोर देकर कही थी कि मेरी रायको कोई महत्त्व न दिया जाये। जो सब भाइयोंको अनुकूल हो वही प्रस्ताव पास किया जाना चाहिए। मैने ‘नवजीवन के लिए एक लेख' लिखकर भेजा है। कदाचित् उससे इस सम्बन्ध में कुछ अधिक प्रकाश पड़ेगा। मैं विशेष विचार तो सब भाइयोंसे मिलने और बात समझनेके पश्चात् ही कर सकता हूँ। मेरी रायपर ही सब-कुछ छोड़ देना हरगिज ठीक नहीं है। आप लोग ही सब बातोंपर विचार करके जो ठीक जेंचे वह करने के लिए लोगोंसे क्यों नहीं कहते?
देवचन्दभाई पारेख
वरतेज
मूल गुजराती पत्र (एस० एन० ५६९०) की फोटो-नकलसे।
१. गांधीजी के सहपाठी और मित्र; काठियावाडके एक लोक-सेवक, जो उन दिनों काठियावाड़ राजनैतिक सम्मेलनसे सम्बद थे।
२. डाकखानेकी मुहरके अनुसार।
३. सम्भवतः “उतावला काठियावाड़", ११-५-१९२४।