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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कोई दोष नहीं हो सकता। इसलिए मैं तो अपना पूरा रोष विचारकर्ताओंकी बजाय विचारों के प्रति प्रकट करता।

वाइकोम सत्याग्रह

मुझे लगता है कि वाइकोम सत्याग्रह अपनी मर्यादाएँ भंग करने लगा है। मैं तो यह चाहता हूँ कि सिख अपना लंगर बन्द कर दें और यह आन्दोलन सिर्फ हिन्दुओं तक सीमित रहे। कांग्रेसके कार्यक्रममें शामिल कर लिये जानेसे ही यह हिन्दुओं और गैर-हिन्दुओंका आन्दोलन नहीं बन जाता, ठीक उसी प्रकार जैसे खिलाफत आन्दोलन कांग्रेसके कार्यक्रममें शामिल कर लिये जानेपर भी मुसलमानों और गैर-मुसलमानोंका आन्दोलन नहीं बन गया। इसके सिवा खिलाफत आन्दोलनके विरुद्ध ब्रिटिश सरकारके रूपमें गैर-मुसलमान लोग थे। अगर हिन्दू या दूसरे गैर-मुसलमान लोग मुस- लमानोंके अपने अन्दरूनी धार्मिक झगड़ोंमें दखल देने लगें तो वह बेजा मदाखलत होगी और अगर मुसलमान उसे धृष्टतापूर्ण समझें तो वह ठीक ही होगा। इसी तरह जो मामला सिर्फ हिन्दू समाजके सुधारसे सम्बन्धित है यदि उसमें गैर-हिन्दू टाँग अड़ाना चाहें तो कट्टरपंथी हिन्दू नाराजी जाहिर करेंगे ही। यदि मलाबारके हिन्दू-सुधारक गैर-हिन्दुओंकी सहानुभूतिको छोड़कर और किसी प्रकारकी सहायता अथवा हस्तक्षेप स्वीकार करेंगे या उसे प्रोत्साहन देंगे तो वे सारे हिन्दू समाजकी हमदर्दी खो बैठेंगे। मुझे पूरा विश्वास है कि वाइकोममें इस आन्दोलनका नेतृत्व करनेवाले हिन्दू सुधारक अपने कट्टरपंथी भाइयोंके विचारोंमें जोर-जबरदस्तीके बलपर परिवर्तन नहीं चाहते। जो भी हो, नेताओंको वह सीमा-रेखा जान लेनी चाहिए जिसका अतिक्रमण किसी भी सत्याग्रहीको नहीं करना है। मैं सुधारकोंका पूरा सम्मान करते हुए, अनुरोध करना चाहता हूँ कि वे सनातनी लोगोंको आतंकित करनेकी कोशिश न करें। मैं इस विचारसे सहमत नहीं हूँ कि वाइकोममें जिस रास्तेको लेकर संघर्ष चल रहा है, यदि वह खुल जाता है तो मलाबार-भरमें छुआछूतकी समस्या हल हो जायेगी। वाइकोममें यदि अहिंसापूर्ण तरीकोंसे विजय हासिल की गई तो इसमें शक नहीं कि पण्डे-पुजारियों द्वारा फैलाये गये अन्ध-विश्वासोंके गढ़की नीवें आमतौरपर हिल जायेंगी, पर हर स्थानपर जब भी समस्या सिर उठाये तब उसे वहीं स्थानीय रूपसे ही हल करना पड़ेगा। गुजरातमें कहीं एक जगह कोई कुआँ हरिजनोंके इस्तेमालके लिए खोल दिये जानेका यह मतलब नहीं होगा कि गुजरातके सारे कुएँ उनके लिए खुल जायेंगे और अगर ईसाई, मुसलमान, अकाली और इन हिन्दू-सुधारकोंके सभी गैर-हिन्दू मित्र भी कट्टरपंथी हिन्दुओंके विरुद्ध प्रदर्शन करने लगें, इन सुधारकोंकी सभी पैसे-रुपयेसे मदद करने लगें और अन्तमें आतंकित करके उनपर हावी हो जायें तो हिन्दू-धर्मका क्या होगा? क्या हम इसे सत्याग्रह कह सकेंगे? क्या सनातनी लोगोंका घुटने टेक देना स्वेच्छाप्रेरित कहा जायेगा? क्या उसे हिन्दू धर्ममें सुधार कहेंगे?

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, ८-५-१९२४