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जेलके अनुभव -४


सुधार होगा। फिर तो जेल सुधार-गृह हो जायेंगे और समाजमें पाप करनेवाले लोग उन स्थानोंमें जाकर सुधर जायेंगे और लौटकर आनेपर समाजके प्रतिष्ठित सदस्य बन जायेंगे। हो सकता है, वह दिन बहुत दूर हो; लेकिन अगर हम पुरानी रूढ़ियोंके मोहमें न पड़ गये हों तो जेलोंको सुधार-गृह बनाने में हमें कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए।

यहाँ मुझे एक जेलरके सारगर्भित वचन याद आते हैं। उसने कहा था:

“जब कभी मैं कैदियोंको भरती करता हूँ या उनकी तलाशी लेता हूँ अथवा उनके बारेमें रिपोर्ट करता हूँ, मेरे मनमें अकसर एक सवाल उठता है; क्या मैं इनमें से ज्यादातर लोगोंसे अच्छा हूँ? ईश्वर जानता है कि इनमें से कुछ जिन अपराधोंके कारण यहाँ आये हैं, उनसे बुरे अपराध तो मैंने किये हैं। फर्क इतना ही है कि इन बेचारोंके अपराधका पता लग गया और मेरे अपराधका पता नहीं लग पाया।”

जो बात इस नेक जेलरने स्वीकार की, क्या वही हममें से बहुतोंके साथ लागू नहीं होती? समाज उनपर तो अँगुली नहीं उठाता। लेकिन हमें तो, जिन लोगोंमें बच निकलनेकी चतुराई नहीं है, उनके प्रति सदा शंकित बने रहने की आदत पड़ गई है। कारावासके परिणामस्वरूप अकसर वे पक्के अपराधी बन जाते हैं।

कोई भी व्यक्ति पकड़ा गया कि उसके साथ पशुओंका-सा व्यवहार शुरू हो जाता है। अभियुक्त जबतक अपराधी न सिद्ध कर दिया जाये तबतक सिद्धान्ततः उसे निर्दोष माना जाता है। लेकिन व्यवहारमें उसकी देख-रेखके लिए जिम्मेदार लोगोंका रवैया दम्भपूर्ण और तिरस्कार-भरा होता है। मनुष्य अपराधी करार दिया गया कि वह समाजका अंग रह ही नहीं जाता। जेलका वातावरण उसमें अपने-आपको हीन मानने की आदत पैदा कर देता है।

राजनीतिक कैदियोंपर इस निर्वीर्य बनानेवाले वातावरणका असर आमतौरपर नहीं होता। मनको खिन्न बना देनेवाले इस वातावरणके असरमें आनेकी बजाय वे उसके खिलाफ संघर्ष करते है और कुछ अंशोंमें उसे सुधार भी पाते हैं। समाज भी उन्हें अपराधी नहीं मानता। इसके विपरीत, वे वीर पुरुष और शहीद माने जाते हैं। जेलमें उन्हें जो कष्ट भोगना पड़ता है, उसका बखान लोग बहुत बढ़ा-चढ़ा-कर करते हैं और कभी-कभी यह अति प्रशंसा राजनीतिक कैदियोंके नैतिक पतनका भी कारण बन जाती है। लेकिन दुर्भाग्यकी बात यह है कि राजनीतिक कैदियोंके प्रति आम लोग जितनी उदारता दिखाते हैं, अधिकारीगण उतनी ही सख्ती बरतते हैं; अधिकांश मामलोंमें यह सख्ती बिलकुल बेजा हुआ करती है। सरकार राजनीतिक कैदियोंको साधारण कैदियोंसे अधिक खतरनाक मानती है। एक अधिकारीने बड़ी गम्भीरतासे कहा था कि राजनीतिक कैदीके अपराधसे पूरे समाजको खतरा रहता है, जब कि साधारण अपराधसे केवल अपराधीका ही नुकसान होता है।

एक दूसरे अधिकारीने मुझे बताया कि राजनीतिक कैदियोंको अलग रखने और पत्र-पत्रिकाएँ न देनेका कारण यह है कि उन्हें अपने अपराधका एहसास कराया जाये।