कानूनके जरीयेसे किसीकी बुरी आदत छुडाना इतने ही से पशुबल नहीं कहा जाय--कानूनसे शराबका धंदा बंध करना और इसलिये शराबियोंका शराबका छोडना बलात्कार नहि है। यदि ऐसा कहा जाय कि शराब पीनेवालोंको बेत लगाये जायेंगे तो अवश्य पशुबल माना जाय। शराब बेचनेका इसका कर्तव्य नहीं है।
आपका,
मोहनदास
यं. इ. के बारेमें स्वामी आनन्द कहते हैं आपको बील भेजा गया है
मूल पत्र (सी० डब्ल्यू० ६०११) से।
सौजन्य: घनश्यामदास बिड़ला।
१४४. पत्र: मु० रा० जयकरको
[२१ जून, १९२४]
आपका पत्र मिला, धन्यवाद। मित्रगण चाहें तो आपको लिखे गये मेरे पत्रका उपयोग कर सकते हैं। मैं चाहता हूँ कि इस सम्बन्धमें हम दोनोंके बीच सम्पर्क बना रहे। उनका कार्य निष्कलंक रहे, इस बारेमें मैं केवल आपपर निर्भर हूँ। मैं तो यह चाहता हूँ कि वे अपने चरित्रके बलपर ही धन एकत्र करें। कमी पड़नेपर हम बादमें हाथ बँटा सकते हैं। आपको मेरे स्वास्थ्यके विषयमें चिन्ता है, इसके लिए आभारी हूँ। वर्तमान परिस्थितिमें जितना विश्राम सम्भव है उतना ले रहा हूँ।
हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी
स्टोरी ऑफ माई लाइफ, खण्ड २