पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 24.pdf/२९६

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२६६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आपको बुढ़ापेमें भी वर्षाकी ठंड नहीं लगी इसका एक कारण तो है आपका निरन्तर बढ़ता हुआ युवकों जैसा-उत्साह और दूसरा है आपका सेवा-कार्य। जो लोग खुदाका नाम लेकर खुदाका ही काम करनेके लिए घरसे निकलते हैं, अगर उन्हें ख़ुदा ही नहीं बचायेगा तो वह खुदा कैसा?

मैं चाहता हूँ कि आप ऐसा यत्न करें कि श्रीमती अब्बास, बेटी रेहाना तथा अन्य कुटुम्बियों को भी चरखेकी धुन लग जाये।

आप चाहे जितने और जैसे पत्र लिखें मैं आपको उन सबके लिए पहले ही इकट्ठा क्षमादान किये देता हूँ।

आपका,
मोहनदास गांधी

मूल गुजराती पत्र (एस० एन० ९५४७) की फोटो नकलसे।

१३८. टिप्पणियाँ

वाइकोम सत्याग्रह

कहा जाता है कि तियोके[१] धर्मगुरु श्री नारायण महाराजने वाइकोम सत्याग्रहके मौजूदा तरीकोंको नापसन्द किया है। उनका कहना है कि स्वयंसेवकोंको बाड़ लगाये हुए रास्तोंसे लगकर चलना चाहिए और बाड़ोंको लाँघ जाना चाहिए। उनको मन्दिरोंमें जाना चाहिए और दूसरे लोगों के साथ भोजन भी करना चाहिए। उन्होंने मुलाकातमें जो कुछ कहा है, उसका सार ही मैंने यहाँ दिया है। फिर भी ये लगभग उन्हींके शब्द हैं। जो काम करनेकी सलाह दी गई है, वह सत्याग्रह नहीं है, क्योंकि बाड़ोंको लाँघना स्पष्ट हिंसा है। यदि बाड़ोंको तोड़ा जा सकता हो तो फिर मन्दिरोंके दरवाजे ही क्यों न तोड़ डाले जायें और उनकी दीवारोंमें ही छेद करके क्यों न घुसा जाये? शारीरिक बलका प्रयोग किये बिना स्वयंसेवकगण पुलिसकी कतारोंको चीरकर कैसे जा सकते हैं? मैं एक क्षणके लिए भी ऐसा नहीं कहता कि इन तरीकोंसे तिया लोग, यदि वे मजबूत हैं और काफी तादादमें मरनेके लिए तैयार हैं तो अपना मकसद हासिल नहीं कर सकते। मैं तो सिर्फ यह कहता हूँ कि यदि ऐसा हुआ तो उसका मतलब यह होगा कि उन्होंने अपना मकसद उन तरीकोंसे पूरा किया, जो सत्याग्रहके तरीकोंके खिलाफ हैं और फिर इससे वे एक भी पुराने खयालके हिन्दूको अपनी रायके मुआफिक न कर सकेंगे; यह तो अपनी राय लादना कहलायेगा। एक मित्र, जिन्होंने इस मुलाकातका हाल एक अखबारसे काटकर भेजा है, लिखते हैं कि मुझे चाहिए कि मैं इन गुरुके हिंसामूलक सुझावके कारण वहाँकी कांग्रेस कमेटीको यह सत्याग्रह बन्द करनेकी सलाह दूँ। मुझे लगता है कि ऐसा करना

 
  1. केरलकी एक जाति-विशेष।