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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

थे। हम तो आप जब कहें तब सविनय-अवज्ञा करनेके लिए तैयार हैं।" मैं जानता हूँ कि बारडोली इस सीमातक तैयार नहीं है। प्रश्न तो यह है क्या वह तैयार हो भी सकेगी? और अगर हो सकेगी तो कबतक? इस बारेमें कार्यकर्त्ता क्या कहते हैं?

अभी यह लिख ही रहा था कि प्रागजीकी[१] गिरफ्तारीका तार मिला। इनकी गिरफ्तारी अर्थपूर्ण है। वे तो मुक्त हो गये; लेकिन क्या इससे वहाँके लोग भी अपने कर्तव्यसे मुक्त हो गये? अब सूरत जिलेका क्या कर्त्तव्य है?

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, १५-६-१९२४

१२४. मेड़ताका खेड़ता

"रेंटियानो स्वाध्याय" नामक कविता प्रेषक "शिखरनिवासी" ने लिखा है कि उस लेखमें[२] एक "भयंकर भूल" रह गई है। एक भूल तो केवल हिज्जेकी है। दूसरी अनजानेमें हो गई है। मैंने जो कुछ टिप्पणीके रूपमें दिये जानेके लिए लिखा था वह प्रस्तावनाके रूपमें दे दिया गया और "शिखरनिवासी" ने जो सुन्दर प्रस्तावना भेजी थी वह रह गई। किन्तु "शिखरनिवासी" ने जिस भूलकी ओर मेरा ध्यान खींचा है वह इनके अलावा है। 'मेड़ता' की जगह 'खेड़ता' छप गया है। मेड़ता राजस्थानमें एक नगर है। मैं "शिखरनिवासी" की इस बातसे सहमत हूँ कि यह एक "भयंकर भूल" है। अन्य भूलोंकी सूची भी बनाई जा रही है। उन्हें "शिखर-निवासी" किसी-न-किसी दिन पाठकोंके सामने रखेंगे ही। मैं कई बार "लीन" शब्दके स्थानपर तल्लीन शब्दका प्रयोग करता हूँ, ऐसा "शिखरनिवासी" भाईका कहना है। "तल्लीन" का अर्थ "उसमें लीन" होनेके कारण मुझे "गानेमें तल्लीन" न कहकर "गानेमें लीन" कहना चाहिए था। पाठक इस भूलको सुधार लें।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, १५-६-१९२४
  1. प्रागजी खण्डुभाई देसाई।
  2. देखिए "नित्य कताई", २५-५-१९२४।