१२१. पत्र: वसुमती पण्डितको
ज्येष्ठ सुदी ११ [१३ जून, १९२४][१]
चि० वसुमती,
तुम्हारा आजका पत्र सुन्दर है। अक्षर साफ और ठीक लिखे हुए हैं। इसपर मैं तुम्हें दसमें चार नम्बर अवश्य दे सकता हूँ। प्रभुदास आबूसे आ गया है। अब वहाँ कोई नहीं रहा। राधा पैदल चलकर यहाँ आई है। आशा है कि वह जहाँ ठहरी है वहाँ धीरे-धीरे स्वस्थ हो जायेगी।
बापूके आशीर्वाद
मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ४४५) से।
सौजन्य: वसुमती पण्डित
१२२. पत्र: वा० गो० देसाईको
ज्येष्ठ सुदी १२ [१४ जून, १९२४]
भाईश्री वालजी,
आपके दोनों पत्र मिल गये थे। आप दुबारा प्रूफ देखना चाहते थे यह मुझे मालूम नहीं पड़ा। आपका पहला लेख तो प्रकाशित हो चुका है। इसमें मेड़ताका[२] खेड़ता हो गया है। आपकी माताजी यहाँ आ गई हैं। आपके भाईको नौकरी मिलनेमें कुछ बाधा आ गई जान पड़ती है।
मोहनदासके वन्देमातरम्
मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ६०१०) की फोटो-नकलसे।
सौजन्य: वालजी गो० देसाई