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हिन्दू-मुस्लिम तनाव: कारण और उपचार

कुछ लोगोंने तो मुझे हिन्दू मानने तकसे इनकार कर दिया है। उनका कहना है कि मैं प्रच्छन्न ईसाई हूँ। मुझसे बड़े असंदिग्ध स्वरमें कहा गया है कि ‘भगवद्गीता’ का यह अर्थ करना कि उसमें विशुद्ध अहिंसा धर्मका उपदेश किया गया है, ‘गीता’ के अर्थका अनर्थ करना ही है। मेरे कुछ हिन्दू भाई मुझसे कहते हैं कि अमुक परिस्थितिमें ‘भगवद्गीता’ ने हिंसाको धर्म बताया है। अभी हालमें ही एक उद्भट विद्वान सज्जनने 'गीता' की मेरी व्याख्यापर नाक-भौंह सिकोड़ते हुए कहा कि ‘गीता’ के बारेमें कुछ टीकाकारोंके इस मतका कोई उचित आधार नहीं है कि 'गीता' में देवी और आसुरी शक्तियोंके बीच होनेवाले सनातान संघर्षका चित्रण है और तनिक भी संकोच या दुर्बलता दिखाये बिना अपने आन्तरिक कश्मलको दूर कर देना हमारा कर्तव्य बताया गया है।

अहिंसाके खिलाफ इन तमाम विचारोंको इतने विस्तारसे देनेका प्रयोजन यह है कि साम्प्रदायिक समस्याका जो समाधान में बताने जा रहा हूँ, लोग अगर उसे समझना चाहते हैं तो इन विचारोंको हृदयंगम कर लेना जरूरी है।

मैं आज अपने चारों ओर जो कुछ देख रहा हूँ, वह तो अहिंसा-प्रसारके विरुद्ध उत्पन्न प्रतिक्रिया ही है। मुझे ऐसा मालूम होता है कि हिंसाकी एक जबरदस्त लहर उठी चली आ रही है। हिन्दू-मुस्लिम तनाव अहिंसाके प्रति अरुचिका उग्र रूप है।

इस सवालका विचार करते समय मेरा खयाल ही न रखा जाये। मेरा धर्म तो मेरे और मेरे सिरजनहारके बीचकी बात है। अगर मैं हिन्दू हूँ तो सारे हिन्दू समाजके द्वारा बहिष्कृत हो जानेपर भी मैं हिन्दू ही बना रहूँगा। इतना तो मैं कहता ही रहूँगा कि धोका पर्यवसान अहिंसामें है।

सीमित अहिंसा

परन्तु मैंने लोगोंके सामने अहिंसाके परमरूपको कभी रखा ही नहीं―― भले ही इसका कारण केवल इतना ही हो कि मैं अपने-आपको इस योग्य नहीं मानता कि उस प्राचीन सन्देशको संसारके समक्ष रखूँ। यद्यपि बुद्धिके धरातलपर मैंने अहिंसाके उस परम स्वरूपको पूरी तरह समझ लिया है और ग्रहण कर लिया है, लेकिन वह अभी मेरे रोम-रोममें भिदा नहीं है। मेरी शक्तिका आधार इतना ही है कि जिस बातको मैंने खुद अपने जीवनमें बार-बार आजमाकर नहीं देख लिया है उसपर आचरण करने के लिए दूसरोंसे नहीं कहता। तो मैं आज अपने देश भाइयोंसे अनुरोध करता हूँ कि वे सिर्फ दो उद्देश्यों के लिए अहिंसाको अपने अन्तिम धर्मके रूपमें अपना लें एक तो विभिन्न जातियोंके पारस्परिक सम्बन्धोंके नियमनके लिए और दूसरे, स्वराज्य प्राप्त करने के लिए। हिन्दुओं, मुसलमानों, ईसाइयों, सिखों और पारसियोंको अपने आपसी मतभेदोंके निबटारेके लिए हिंसाका सहारा नहीं लेना चाहिए; और हम स्वराज्य अहिंसात्मक तरीकेसे प्राप्त करना चाहिए। इसे मैं भारतके सामने कमजोरोंके हथियारके तौरपर नहीं, बल्कि बलवानोंके हथियारके तौरपर पेश करनेकी हिम्मत करता हूँ। धर्मके मामलेमें जोर-जबरदस्ती न हो, इसके बारेमें हिन्दू और मुसलमान दोनों बातें तो बहुत करते हैं, लेकिन कोई हिन्दू एक गायकी जान बचाने के