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७५. तार: सरलादेवी चौधरानीको[१]

[२९ मई, १९२४ के पूर्व]


नाबालिगोंको निश्चय ही सत्याग्रहमें शामिल नहीं होना चाहिए।

[अंग्रेजीसे]
लीडर, ३१-५-१९२४

७६. पत्र: नारायण मोरेश्वर खरेको

शनिवार [२९ मई, १९२४ के पूर्व][२]


भाई श्री ५ पण्डितजी,

आपका पत्र मिला।

ऐसी व्यवस्था करें जिससे रामभाऊ अवश्य ही जलवायु परिवर्तन करके स्वस्थ हो जाये।

स्त्रियोंका मासिक धर्मके दिनोंमें अलग बैठना आवश्यक और अनिवार्य धर्म नहीं है। कुमारिकाओंके लिए तो यह अनावश्यक ही है। हाँ, इससे स्वास्थ्यकी रक्षामें कुछ मदद जरूर मिलती है। विवाहित स्त्री उन दिनों विशेषरूपसे अलग रहती है ताकि वह अपने पतिकी पशुवृत्तिसे बच सके। मन्त्र-शक्तिकी दृष्टिसे रजस्वला स्त्रीके स्पर्शका क्या परिणाम होता है, इसकी जानकारी मुझे नहीं है। इस सम्बन्धमें नाथजीकी[३] बताई विधिसे चलना चाहिए। मुझे किशोरलाल भाईसे[४] मालूम हुआ है कि मन्त्रवान मनुष्यके लिए रजस्वलाके स्पर्श में दोष तभी होता है जब उसे यह ज्ञान हो कि वह रजस्वला है। अगर मन्त्रवान मनुष्य यह नहीं जानता कि कोई स्त्री रजस्वला है और उसका स्पर्श कर लेता है तो इसका मन्त्रपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

बापूके आशीर्वाद

मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० २५५) से।

सौजन्य: लक्ष्मीबाई खरे

  1. यह तार श्रीमती चौधरानीके उस कथित वक्तव्यके बारेमें भेजा गया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि तारकेश्वर सत्याग्रहमें उनका नाबालिगा पुत्र दीपक एक स्वयंसेवककी तरह शामिल होना चाहता है। देखिए “सचिवको हिदायत", २३ मई, १९२४ को या इसके पश्चात्।
  2. पण्डित नारायण मोरेश्वर खरेने नाथजीसे, जो १९२४ में आश्रममें ठहरे हुए थे [सर्प-] मन्त्र सीखा था। ऐसा लगता है कि गांधीजीने यह पत्र २९ मई, १९२४ को बम्बईसे आश्रममें लौटनेसे पहले लिखा होगा।
  3. केदारनाथ कुलकर्णी। एक साधक; ये आश्रममें प्रायः आते थे।
  4. किशोरलाल मशरूवाला।