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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


पोषणके लिए नहीं बल्कि अपना लाड़-दुलार दिखानेके लिए तरह-तरहके स्वाद सिखाकर हमारी आदतें बिगाड़ते हैं। हमें ऐसे वातावरणके विरुद्ध लड़नेकी आवश्यकता है।

लेकिन विषयोंको जीतनेका स्वर्ण-नियम तो रामनामका अथवा ऐसे ही किसी दूसरे मन्त्रका जप करना है। द्वादश मन्त्र[१] भी यही काम देता है। हमें अपनी-अपनी भावनाके अनुसार मन्त्रका जप करना चाहिए। मुझे बचपनसे रामनाम सिखाया गया था; उसका सहारा मुझे बराबर मिलता रहता है। इसलिए मैंने वही रामनाम सुझाया है। हम, जो भी मन्त्र जपें उसमें तल्लीन हो जाना चाहिए। यदि मन्त्र जपते समय दूसरे विचार आयें तो कोई चिन्ता नहीं। फिर भी यदि हम श्रद्धा रखकर मन्त्रका जप करते रहेंगे तो अन्तमें सफलता अवश्य प्राप्त करेंगे। मुझे इसमें रत्ती-भर भी शक नहीं है। यह मन्त्र मनुष्यकी जीवन-डोर बनेगा और उसे सारे संकटोंसे बचायेगा। किसीको भी ऐसे पवित्र मन्त्रोंका उपयोग आर्थिक लाभके लिए हरगिज नहीं करना चाहिए। इस मन्त्रका चमत्कार हमारी नीतिको सुरक्षित रखनेमें है और यह अनुभव प्रत्येक साधकको थोड़े ही समयमें मिल जायेगा; हाँ, हमें इतना याद रखना चाहिए कि कोई भी इस मन्त्रको तोतेकी तरह न रटें। उसमें हमें अपनी सारी आत्मा लगा देनी चाहिए। तोते ऐसे मन्त्रको यन्त्रकी तरह बिना विचारे रटते हैं; हमें ऐसे मन्त्रका जप अवांछनीय विचारोंका निवारण करनेकी भावना रखकर और मन्त्रको तद्विषयक शक्तिमें विश्वास रखकर ज्ञानपूर्वक करना चाहिए।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २५-५-१९२४

६४. मिल-मजदूर और खादी

अहमदाबादके मिल-मजदूरोंमें जो खादी प्रचार हो रहा है, उसका विस्तृत विवरण ‘खादी समाचार पत्रिका’[२] के छठे अंकमें प्रकाशित हुआ है। उससे पता चलता है कि बहुतसे मजदूरोंने खादी ही पहननेका निश्चय किया है तथा कुछेक मजदूरोंने अपने घरों में चरखे रखने और करघे लगानेका फैसला किया है। मजदूरोंकी ओरसे बीस स्कूल चलते हैं, जिनमें आठ सौ बालक पढ़ते हैं। ये सब खादी पहनते हैं। उनकी सुविधाके लिए व्यवस्थापकोंने खादीके कुर्ते-टोपियाँ आदि तैयार करवाई है। थोक-बन्द काम करवानेसे एक कुर्तेकी सिलाई पौने तीन आने और टोपीकी केवल छ: पाई पड़ती है।

‘मजूर सन्देश’[३] में नीचे लिखा आकर्षक व्यौरा दिया गया है:
आप सेर खावी लोगे तो――
दस आने हमारे किसी गरीब किसानको मिलेंगे;
 
  1. द्वादशाक्षर मन्त्र, ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।
  2. मगनलाल गांधी द्वारा सम्पादित।
  3. अहमदावादके कपड़ा मिल-मजदूर संघ द्वारा प्रकाशित पत्रिका।