पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 24.pdf/१२७

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
९७
भेंट: वाइकोम शिष्ट-मण्डलसे


भारतीयोंको एक राष्ट्र के रूपमें सुदृढ़ बनानेके लिए अस्पृश्यता-निवारण आवश्यक है ही, इसलिए क्या प्रत्येक हिन्दू और गैर-हिन्दू भारतीयका यह कर्तव्य नहीं हो जाता कि वह इस बुराईको दूर करने में हाथ बँटाये?

उ०: खिलाफतके मामले में संघर्ष था मुसलमान समाज और एक गैरमुसलमान सत्ताके बीच। यदि वह संघर्ष मुसलमानोंके दो फिरकोंके बीच होता तो मैं हिन्दुओंसे उसमें भाग लेनेके लिए न कहता। हिन्दू समाजमें जो बुराइयाँ फैली हुई हैं, उनको दूर करना हिन्दुओंका कर्तव्य है। अपने समाजमें सुधार कार्य करने के लिए वे बाहरके लोगोंकी मदद नहीं ले सकते और न उनको लेनी ही चाहिए। इस तरहकी सहायता आपका मनोबल गिराती है और उन कट्टरपंथियोंको क्रुद्ध कर देती है जिन्हें आपको प्रेमके बलपर बदलना और अपने पक्षमें करना है। गैर हिन्दू लोगोंकी दखलंदाजीसे ऐसे लोगोंको निश्चय ही, और बिलकुल न्याय-संगत लगेगा कि उनको अपमानित किया जा रहा है।

प्र०: वाइकोमके संघर्षका उद्देश्य एक नागरिक अधिकारको अर्थात् आम सड़कपर चलनेके अधिकारको प्रतिष्ठित करना है, क्या इसे देखते हुए प्रत्येक नागरिकका यह कर्त्तव्य नहीं हो जाता कि वह इस संघर्षमें मदद करे, फिर वह किसी भी धर्मका क्यों न हो?

उ०: किसी भी देशी राज्यके आन्तरिक प्रशासनमें कांग्रेस कमेटीको हस्तक्षेप करनेका कोई अधिकार नहीं है। केरल कांग्रेस कमेटीने यह आन्दोलन सिर्फ इसीलिए शुरू किया है कि कांग्रेसने हिन्दुओंसे हिन्दू-समाजमें प्रचलित अस्पृश्यताको दूर करनेके लिए कहा है। वाइकोमके संघर्षका मुख्य मसला यही है कि अमुक वर्गके लोगोंको आम सड़कपर चलनेकी इजाजत इसलिए नहीं दी जाती कि उन्हें अनुपगम्य माना जाता है। यह प्रश्न केवल हिन्दुओंसे सम्बन्धित है और इसलिए इस संघर्ष में ‘गैर हिन्दुओं' का कोई स्थान नहीं है।

प्र०: महात्माजी, आप अकालियों द्वारा वहाँ चलाये जानेवाले लंगरका इतने जोरोंसे विरोध क्यों करते हैं? अकालो लोग तो सभी जातियों और फिरकोंके लोगोंको भोजन देनेके लिए तैयार हैं और वास्तवमें दे भी रहे हैं। वे इस संघर्ष में किसी भी एक पक्षके साथ तो है नहीं।

उ०: आत्मसम्मान रखनेवाला कोई भी व्यक्ति ऐसे भण्डारेसे खाना नहीं लेगा। आपकी अकालकी परिस्थिति नहीं है और न आप ऐसी ही हालतको पहुँच गये है कि भोजनके लिए दूसरोंकी दानशीलताका मोहताज बनना पड़े। बाहरी सहायताके विपक्ष में जितनी भी दलीलें पहले दी गई है वे सभी वाइकोमके लंगरपर भी लागू होती है।

प्र०: महात्माजी, आगामी संघर्षके दौरान अपनाये जानेवाले तरीकेके बारेमें आप हम लोगोंको क्या सलाह देना चाहेंगे?

उ०: आप जिस ढंगसे संघर्ष चला रहे हैं, उसी ढंगसे चलाते रहें। सत्याग्रह करनेवाले स्वयंसेवकोंकी संख्या भले ही बढ़ा लें। यदि आपमें पर्याप्त शक्ति हो तो

२४-७