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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


करना उनका धर्म हो जाता है तो उन सभीको अथवा उनमें से किसी एकको भी सत्याग्रह करने का अधिकार है। सत्याग्रह बिना किसी संगी-साथीके भी किया जा सकता है, यह उसकी खूबी है। मेरे विरोधी विचारके कारण लोगोंमें बुद्धि-भेद उत्पन्न होनेकी बात मेरी समझमें आती है; लेकिन जिसे सत्यके दर्शन हो गये हैं वह सत्याग्रहकी प्रचण्ड शक्तिका उपयोग करके इस भेदसे बच सकता है। सत्याग्रही मेरे विरोध करनेपर भी कदापि पीछे नहीं हटेगा। मुझे भले ही इस बातका अभिमान हो कि सत्याग्रहके शास्त्रको तो केवल मैं ही जानता हूँ, लेकिन इस शास्त्रके ज्ञानपर मेरा कोई एकाधिकार नहीं है। एक भाईने इस विषयपर एक पुस्तक प्रकाशित करके इस बातकी सत्यता सिद्ध करनेका प्रयत्न भी किया है। उन्होंने लिखा है कि मेरा सत्याग्रह अपेक्षाकृत अशुद्ध है और उस भाईने स्वयं जिस सत्याग्रहकी परिकल्पना की है वह शुद्धतम है। मैं किसी समय पाठकोंको इस पुस्तकका परिचय देनेकी आशा रखता हूँ। सत्याग्रहके उपयोग और उसकी योजनाके सम्बन्धमें नित्य नई खोज होती ही रहेगी। जिसमें आत्म-विश्वास हो उसका धर्म है कि वह इसमें प्राणोंका मोह त्यागकर कूद पड़े। सत्याग्रही अपनी कल्पनाका सत्य दूसरोंको दुःख देकर नहीं; बल्कि स्वयं दुःख सहकर मूर्तिमन्त करता है, केवल इस एक बातमें ही परिवर्तन नहीं हो सकता क्योंकि सत्याग्रहकी व्याख्यामें ही उसका समावेश हो जाता है। इसलिए सत्याग्रहीको अपनी भूलोंका परिणाम मुख्य रूपसे स्वयं ही भोगना पड़ता है।

मैं इस प्रस्तावनासे जो लोग सच्चे सत्याग्रही हैं उन्हें उत्तेजन प्रदान करने के बाद पिछले हफ्ते ली गई प्रतिज्ञापर आता हूँ।

सारे हिन्दुस्तानमें, विशेषतः काठियावाड़में फिलहाल मौन रहनेका समय आ गया है। काठियावाड़पर तो सदासे यही आरोप लगाया जाता है कि हम लोग कथनीके धनी, परन्तु करनीके कायर हैं। वक्तृत्वकी छटाकी जरूरत हो तो देवी सरस्वती अपना कलश काठियावाड़पर जरूर उड़ेलेगी। इसका अनुभव तो मैं दक्षिण आफ्रिकामें भी करता था। वहाँके काठियावाड़ी सज्जन इस बातकी गवाही अवश्य देंगे। लेकिन इससे कोई यह न समझ ले कि वहाँ मेरे जैसे काम करनेवाले कुछ लोग भी अपवादरूप नहीं निकल आते थे। भाषण देनेवाले लोग तो विधाताने काठियावाड़में ही सिरजे है।

अतः काठियावाड़ियोंको अब अपनी जबान बन्द रखनी चाहिए। उन्हें अपनी कलम कलमदानमें ही पड़ी रहने देनी चाहिए। यदि परिषद् हुई तो वह आगामी वर्ष दिये जानेवाले भाषणोंके कार्यक्रमको निर्धारित करने के लिए नहीं वरन् कामकी रूपरेखा तैयार करने के लिए होगी। हमने अनुभवसे जान लिया है कि जनतामें जागृति पर्याप्त हो गई है और हम अवसर पड़नेपर हजारों लोगोंको इकट्ठा कर सकते है; हमें इस भानकी जरूरत थी। इस समय हजारों लोगोंको इकट्ठा करनेकी जरूरत नहीं है। इससे तो समय और धनका व्यर्थ ही अपव्यय होगा।

काठियावाड़की छब्बीस लाखकी आबादीमें काम करना सहल है। खादीका प्रचार, पाठशालाओंकी स्थापना, अस्पृश्यता-निवारण और दारू और अफीमका निषेध――ये कार्य

१. “काठियावाड़ियोंके प्रति अन्याय", १-६-१९२४ भी देखिए।