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गृह-कलह


लिखा है वह केवल दोनों सज्जनोंके प्रति आदरभावसे प्रेरित होकर ही लिखा है। अगर मैं अपने लेखमें इस भावको दर्शानेमें असफल रहा हूँ तो मैं दोनों सज्जनोंको विश्वास दिलाना चाहता हूँ कि इसका कारण मेरी भाषाकी खामी है, भावकी नहीं।

भाई कल्याणजीकी हालत

भाई कल्याणजी विठ्ठलजीकी तबीयत ठीक नहीं रहती और उनको खुराक इत्यादि की भी असुविधा है――यह जानकर ‘नवजीवन' में इस सम्बन्धमें कुछ भी लिखनेसे पहले मैंने जेलके इन्स्पेक्टर जनरलसे लिखकर पूछताछ की थी। उन्होंने इसका जो उत्तर दिया है वह निम्नलिखित है।

भाई कल्याणजीका वजन सन्तोषजनक नहीं कहा जा सकता। जिस समय वे जेलसे बाहर थे यदि उस समय उनका वजन ९२ पौण्ड था तो यह बहुत कम कहा जायेगा। जेलमें उनकी ऊँचाईके अनुपातसे उनका वजन बढ़ना ही चाहिए।

अन्त्यजोंके सम्बन्धमें कीर्तन

एक स्वयंसेवक लिखता है, स्वदेशी अर्थात् खादी-प्रचार, मद्य-निषेध आदिके विषयमें कीर्तन हो रहे हैं और इनसे गाँवोंमें प्रचार बहुत अच्छा हो जाता है। ऐसे भजन-कीर्तन अन्त्यजोंके सम्बन्धमें नहीं है। गुजरातमें असहयोगी और सहयोगी दोनों तरहके पर्याप्त कवि हैं। अन्त्यजोंका विषय एक ऐसा विषय है जिसे लेकर सहयोगी और असहयोगीके बीच बहुत अन्तर नहीं है। जब अन्त्यज भाइयोंके लिए स्कूल खोलनेके कार्यमें सरकारी मदद लेनेकी बात आती है, तभी केवल सहयोगी और असहयो गीके भेदकी बात उठती है। तात्पर्य यह कि अस्पृश्यता पाप है और अन्त्यजोंकी सहायता करना प्रत्येक हिन्दुका धर्म है। क्या हमारे कवि ऐसी काव्य-रचना करके गुजरातकी सेवा नहीं करेंगे?

[गुजरातीसे]

नवजीवन, १८-५-१९२४

३९. गृह-कलह

एक “अनाविल" भाई जिन्होंने अपना नाम-धाम लिखा है, अपने दुःखकी रामकहानी इस प्रकार सुनाते हैं:

मैं समझता हूँ कि जैसी दयनीय दशा इन भाईकी है वैसी बहुतसे व्यक्तियोंकी होगी। पति और पत्नीका पारस्परिक सम्बन्ध इतना नाजुक है कि कोई तीसरा मनुष्य

१. गुजरातके एक कांग्रेसी नेता और शिक्षा-शास्त्री।

२. यहाँ नहीं दिया गया है।

३. गुजरातकी एक जाति।

४. पत्र यहाँ नहीं दिया गया है। पत्र-केखकने पूछा था कि वे क्यों न अपनी पत्नीके विरुद्ध सत्याग्रहका प्रयोग करें क्योंकि उनकी पत्नी सिनेमा, विवाह आदिमें सम्मिलित होते समय विदेशी कपड़े का प्रयोग करती हैं, हालाँकि उन्होंने विदेशी कपड़ा खरीदना बन्द उर दिया है।