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भेंट: ‘हिन्दू' के प्रतिनिधिसे


तरीका अपनाना आम बनता जा रहा है। क्या आपका यह खयाल नहीं है कि इस अस्त्रके दुरुपयोगका और “सत्याग्रह" के बदले अवैध किस्मके उद्देश्योंको पूरा करनेके लिए, “दुराग्रह" का खतरा पैदा होता जा रहा है। क्या आप सत्याग्रहियोंके लिए――कमसे-कम कांग्रेसके नेतृत्वमें चलनेवाले सत्याग्रहियोंके लिए――कुछ नियम निर्धारित कर सकते हैं?

हाँ, मैं मानता हूँ कि सत्याग्रहके सत्याग्रह न रहकर एक अनिष्टकारी शक्ति हो जानेका खतरा है और इसलिए उससे हानि पहुँच सकती है। किसी भी अच्छी चीज और विशेषकर इतनी समर्थ और सूक्ष्म तथा नाजुक शक्तिके दुरुपयोगकी सम्भावना तो हमेशा रहती ही है। मेरा खयाल है कि वाइकोमके सत्याग्रहकी चर्चाके दौरान मैंने उसकी बुनियादी बातोंके बारेमें सरसरी तौरपर विचार किया है, पर मैं आपका यह सुझाव मानता हूँ और थोड़ी फुरसत मिलते ही मैं सत्याग्रहियोंके लिए अपने विचारके अनुसार कुछ अनिवार्य नियम निर्धारित कर दूँगा।

सर्वश्री के० माधवन नायर और कुरुर नीलकण्ठन् नम्बूद्रीपाद वाइकोमसे एक शिष्टमण्डलके सदस्योंके रूपमें आये थे। उन्होंने मुझसे कहा कि महात्माजीके साथ उनको तीन-चार बार काफी देर-देर तक मुलाकातें हुई हैं और काफी ब्योरेवार चर्चा भी हुई है। उन्होंने अपनी योग्यतानुसार सारी बातें महात्माजीके सामने पेश कीं। महात्माजीने अपने सहज धैर्य और विनम्रताके साथ उनकी बातें सुनीं। उन्होंने मुझको बतलाया कि महात्माजीके वक्तव्यसे वे सन्तुष्ट है और उन्होंने अपना विश्वास व्यक्त किया कि केरल और मद्रास-अहातेके कार्यकर्ताओं और सहानुभूति रखनेवालोंको भी इससे सन्तोष होगा। महात्माजीने जोर देते हुए कहा कि प्रत्येक आन्दोलनमें आत्मनिर्भरता और स्वावलम्बन आवश्यक होते हैं। उनको ऐसी आशंका थी कि अस्पृश्यता-आन्दोलन कुछ क्षेत्रोंमें जिस रूपमें चलाया जा रहा है, उसको देखते हुए शायद महात्माजी कांग्रेस कमेटोके इस आन्दोलनको अपने हाथमें लेनेपर राजी न हों। लेकिन अब उन्हें विश्वास हो गया है कि वे ऐसी कोई आपत्ति नहीं करेंगे। महात्माजीने बड़ी ही स्पष्टताके साथ अपनी बात सामने रख दी है और इससे इस दिशामें कोई आशंका नहीं रहती। शिष्टमण्डल एक-दो दिनोंमें वाइकोम लौट रहा है।

महात्माजीने कौन्सिलके प्रश्नके सम्बन्धमें हमारे प्रतिनिधिको बताया कि इसी हफ्तेके अन्दर-अन्दर इस सम्बन्धमें एक सर्वांगपूर्ण वक्तव्य समाचारपत्रोंको भेज दिया जायेगा। हमारे प्रतिनिधिको मालूम हुआ है कि महात्माजी और स्वराज्यवादी नेताओंके बीच कई बार काफी देर-देर तक परार्मश चलता रहा है और वे किसी निर्णयपर लगभग पहुँच चुके हैं।

[अंग्रेजीसे]

हिन्दू, १९-५-१९२४