पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 23.pdf/६६

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जानी चाहिए जबतक कि कार्यकर्त्ता अहिंसाकी भावनाको आत्मसात् न कर लें, और सहयोगियोंसे, चाहे वे अंग्रेज हों या हिन्दुस्तानी, मुक्त कण्ठसे यह न कहनेवालें कि उन लोगोंके दिलोंमें सहयोगियोंके प्रति कोई दुर्भावना बाकी नहीं रह गई है। इसकी सबसे पक्की कसौटी यह होगी कि हमारी सभाओंमें असहिष्णुता और हमारे लेखोंमें कटुताका लेश भी न बचे। दूसरी आवश्यक कसौटी यह होगी कि हम रचनात्मक कार्यक्रमपर गम्भीरतासे अमल करें। यदि उसमें हम जमकर नहीं लग सकते, तो यह मेरे लिए इस बातका निश्चित प्रमाण होगा कि हम नहीं मानते कि अहिंसासे हमारा उद्देश्य पूरा हो सकता है।

अहिंसात्मक वातावरण

किसी भी प्रकारकी हिंसा होते ही सविनय अवज्ञा बन्द कर दी जायेगी, सो बात नहीं है। पारिवारिक झगड़ोंसे, चाहे उनमें रक्तपात ही क्यों न हो जाये, मैं नहीं डरूँगा; और न डाकुओंकी हिंसासे ही घबराऊँगा। अलबत्ता वह मेरे लिए इस बातकी सूचक होगी कि अभी जन-साधारणका आम शुद्धीकरण नहीं हो पाया है। जिस प्रकारकी हिंसा होनेपर सविनय अवज्ञा आवश्यक रूपसे रोक देनी चाहिए वह है राजनीतिक हिंसा। चौरी-चौरा-काण्ड राजनीतिक हिंसाका एक उदाहरण था। वह हिंसा एक राजनीतिक प्रदर्शनसे उभरी थी; यदि हम उस प्रदर्शनका आयोजन पूर्ण शान्तिसे नहीं कर सकते थे तो हमें यह आयोजन करना ही नहीं चाहिए था। मैने मलाबार[१] और मालेगाँवको[२] अपने मार्ग में बाधक नहीं बनने दिया, क्योंकि मोपला विशेष प्रकारके लोग हैं और वे उल्लेखनीय सीमातक अहिंसासे प्रभावित नहीं हुए थे। मालेगाँवका मामला अपेक्षाकृत अधिक पेचीदा था; पर यह बात बिलकुल साफ है कि प्रमख असहयोगियोंने वहाँ हत्याको रोकनेकी भरसक कोशिश की थी। इसके अलावा तब सामूहिक सविनय अवज्ञाके जल्दी शुरू होनेकी बात भी नहीं थी। उससे व्यक्तिगत सविनय अवज्ञामें अन्यत्र कोई बाधा पड़ना सम्भव नहीं था।

आत्म-रक्षा

असहयोगीकी प्रतिज्ञामें ऐसा कुछ नहीं कहा गया है कि उसे वैयक्तिक आत्म-रक्षाका भी अधिकार नहीं है। असहयोगियोंके लिए राजनीतिक हिंसा निषिद्ध है। इसलिए असहयोग जिनका अन्तिम धर्म नहीं है, उन्हें निश्चय ही आक्रमणकारियोंसे अपनी या अपने आश्रितों और बाल-बच्चोंकी रक्षा करनेकी पूरी स्वतन्त्रता है। परन्तु वे अपना बचाव पुलिससे न करें; चाहे वह अपने मनसे, चाहे अधिकृत रूपसे कर्त्तव्य पालन कर रही हो। इसलिए उस प्रतिज्ञाके अनुसार उन्हें लगान वसूल करने वालोंसे, जिन्होंने मैं मानता हूँ कि स्वयंसेवकोंको गैरकानूनी तौरपर मारा-पीटा था, अपना बचाव करनेका अधिकार नहीं था।

  1. देखिए खण्ड २१, पृष्ठ ३३५–३७।
  2. देखिए खण्ड २०, पृष्ठ ६९-७१।