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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

राज्यवादियों अथवा परिवर्तनवादियों और अपरिवर्तनवादियोंके बीच के सब भेद मिट जायेंगे, किन्तु यद्यपि सब लोग मिलकर काम करेंगे फिर भी सामान्यतः वे कांग्रेसी ही कौंसिलों में जायेंगे जिन्हें वहाँ जाने में कोई आपत्ति न होगी। कौंसिल-सम्बन्धी प्रचारके लिए आवश्यक रुपये कांग्रेस कार्यसमिति मंजूर करेगी और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी उसपर नियन्त्रण रखेगी। यह व्यवस्था कांग्रेसके अन्य कार्योंकी तरह ही की जायेगी और उसमें कांग्रेस के खर्चकी दूसरी मदोंके महत्त्वको ध्यान में रखा जायेगा। तिलक स्वराज्य-कोष में धन देनेवाले लोग चाहेंगे तो अपना रुपया कौंसिलोंके कार्यके लिए अलग निर्धारित कर सकेंगे।

२. कांग्रेस कौंसिल-विभाग नामका एक अलग विभाग खोले और उसे स्वराज्यवादियों के अधिकार और नियन्त्रण में रखे। स्वराज्यवादी कौंसिलोंसे बाहरकी कांग्रेसकी साधारण प्रवृत्तियों में भाग लेंगे और जिस तरह कांग्रेस चाहेगी उस तरह कौंसिलोंमें जाकर इन प्रवृत्तियों में सहायता देंगे। इस अवस्थामें भी सामान्य कार्यकारिणी परिषदों में कुछ स्वराज्यवादी रहेंगे; किन्तु उनको तिलक स्वराज्य-कोष में से कोई ऐसी आर्थिक सहायता नहीं दी जायेगी जो कौंसिलोंके लिए निर्धारित न की गई हो। पहले और दूसरे प्रस्ताव में अन्तर यह है कि पहले प्रस्ताव के अनुसार कांग्रेस कौंसिलोंका पूरा कार्यक्रम तय करेगी, किन्तु दूसरे प्रस्तावके अनुसार वह स्वराज्यवादियोंसे अनुरोध करेगी कि वे ऐसे कोई खास कदम उठायें जिनका उल्लेख महात्माजीने अपने मसविदेके अन्तमें किया है, अर्थात् वे खादी के प्रचार और शराब से होनेवाले राजस्वकी बन्दी के सम्बन्ध में कार्रवाई करें।

३. दिल्ली और कोकोनाडा अधिवेशनों के प्रस्तावोंके अनुसार जैसे इस समय कार्य चल रहा है वैसे ही चलता रहे और स्वराज्यवादियोंपर कोई निर्योग्यता न लग जाये। इस अवस्था स्वराज्यवादी अपनी नीति स्वयं बनायेंगे और उसको कार्यरूप देंगे। वे इस सम्बन्ध में कांग्रेसका निर्देशन लेंगे। वे अपने लिए रुपया भी इकट्ठा करेंगे। कांग्रेस उनके कार्य में किसी भी तरह का हस्तक्षेप न करेगी। स्वराज्यवादी दल कांग्रेसके रचनात्मक कार्यको अमल में लाने के लिए यथाशक्ति पूरा प्रयत्न करेगा और कांग्रेस उनके कार्यमें सहायता और सहयोग देगी।

टाइप की हुई अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ८७१६) की फोटो-नकलसे।