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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लिखा[१] है कि मैं पहले आपकी मारफत पूछताछ करवाऊँ और तब उस जानकारीको ध्यान में रखते हुए विचार करूँ कि क्या कदम उठाया जाये। इसलिए यदि आप मुझे निम्नलिखित जानकारी दे सकेंगे तो मैं आभारी हूँगा : (१) इस समय चाय-बागानोंमें वास्तविक स्थिति कैसी है; और क्या १९२१ की घटनाओंके बाद मजदूरी अथवा नैतिक स्थिति में कुछ परिवर्तन हुआ है? (२) क्या वहाँ नये मजदूर आ रहे हैं? यदि आ रहे हैं तो मुख्यतः किन जिलोंसे आ रहे हैं और उनके साथ कैसा व्यवहार किया जा रहा है? (३) क्या आप अपनी जाँच-पड़तालके परिणामको ध्यानमें रखते हुए मजदूरोंकी भरती के खिलाफ कदम उठाना ठीक समझते हैं या क्या वहाँ उनकी देखभाल के लिए किसी व्यक्तिको भेजना चाहिए?

कृपया मेरे इस पत्रके उत्तरकी एक नकल महात्माजीको अन्धेरी, बम्बईके पते-पर भेज दें।

हृदयसे आपका,
रामानन्द संन्यासी

(टिप्पणी) मैं इस पत्रकी एक नकल महात्माजीको उनके आदेशानुसार भेज रहा हूँ।

रा. सं.

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ८६४३) की फोटो-नकलसे।
 

परिशिष्ट १२
एसोसिएटेड प्रेसके प्रतिनिधिसे सी॰ एफ॰ एन्ड्रयूजकी भेंट

इसी विषयपर भेंट के समय श्री सी॰ एफ॰ एन्ड्रयूजने कहा कि जनरल स्मट्ससे हुई प्रारम्भिक वार्ता के दौरान, जिसके परिणामस्वरूप जुलाई १९१४ का स्मट्स-गांधी समझौता हुआ था, मैं लगातार श्री गांधी के साथ-साथ था। वास्तवमें समझौते के मूल मसविदेपर मेरे सामने ही हस्ताक्षर किये गये थे। उसके प्रत्येक शब्दपर सावधानीसे बातचीत की गई थी और दोनों पक्षोंने उसका पूरी तरह स्पष्टीकरण किया था। जनरल स्मट्सने कहा था "इस बार भ्रम या मानसिक दुरावका अवकाश नहीं होना चाहिए। सभी बातें साफ-साफ सामने आ जानी चाहिए।" श्री गांधीने पूर्णतः इस भावनाके अनुरूप ही काम किया था। उन्होंने ये तीन मुद्दे यथासम्भव स्पष्ट कर दिये थे :

(१) समझौते में किसी भी प्रकारकी प्रजातीय भावनाका दोष न होना चाहिए;

(२) जातिके मौजूदा अधिकार छोटे होनेपर भी सुरक्षित रखे जाने चाहिए, और,

  1. देखिए "पत्र : रामानन्द संन्यासीको", २८–३–१९२४।