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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

किसे मानूँ? क्या बच्चोंको मानूँ? सच तो यह है कि यदि हम भाषाके स्पष्ट दोषोंको भी न सुधार सकें तो में 'नवजीवन' को चलानेका तनिक भी अधिकार है क्या? मैं स्वयं तो अपने लेखोंको आवश्यक सावधानीसे और वह भी भाषाकी दृष्टिसे जाँचने योग्य अभी नहीं हुआ हूँ। यदि तुम अथवा स्वामी उनकी पूरी तरह जाँच करनेकी जिम्मेदारी अपने ऊपर न लो तो मुझे 'नवजीवन' को बन्द करने में भी झिझक न होगी। यदि कोई मनुष्य अपने कार्यको सन्तोषजनक रूपसे पूरा न कर सके तो उसको छोड़ देना उसका कर्त्तव्य है।

अन्य बातोंके सम्बन्धमें भी मैं लिखना चाहता हूँ; किन्तु फिलहाल जितना हमारा काम चलाने के लिए काफी है उतना लिखकर ही मुझे सन्तोष मानना चाहिए। इस बार जो सामग्री भेजी है उसे तुम दोनोंमें से कोई सावधानीसे देख जाये ।

बापूके आशीर्वाद

[पुनश्च :]

मैंने "क्रीड" शब्द के लिए 'विचारमान्यता' शब्दका प्रयोग किया है। यदि तुम्हारे खयाल में कोई ज्यादा अच्छा शब्द आ जाये तो इसके स्थानपर उसे रख देना।

वहाँ कोई भी राधाके सम्बन्धमें चिन्तित क्यों हो? वह अब बिलकुल ठीक है। यह पत्र स्वामीको दिखा देना।

गुजराती पत्र (एस॰ एन॰ ८७६०) की फोटो-नकलसे।

३६३. कुछ टीपें

[२३ अप्रैल १९२४ या उसके पश्चात्][१]

वे अध्यक्षका चुनाव कैसे कर सकते हैं?

यह तो मैं वल्लभभाईसे सलाह कर लेनेपर ही कह सकता हूँ।

वे अपनी समितिकी बैठक स्थगित कर दें।

अब उन्हें तार भी कैसे मिल सकता है?

यह जानते हुए उनको तार नहीं देना चाहिए और जैसा वे ठीक समझें उनको वैसा करने देना चाहिए।

यदि उनके पास कोई काम न हो और उन्हें बेकार रहना अच्छा न लगता हो तो वे चरखा तो चला ही सकते हैं।

गुजराती प्रति (जी॰ एन॰ ५७३०) की फोटो नकलसे।

  1. ये टीपें गांधीजीने अपने हाथसे एक तारके पीछे लिखी हैं जो २३ अप्रैल, १९२४ को बलवन्तराय मेहताकी ओरसे वल्लभभाई पटेलको भेजा गया था। तार यह था "देवचन्दभाईंका तार, समितिकी बैठक स्थगित। अन्तिम निर्देश तारसे भेजें।"