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३१२. पत्र : फूलचन्द के॰ शाहको

अन्धेरी
चैत्र सुदी ५ [९ अप्रैल, १९२४]

भाईश्री ५ फूलचन्द,
भाई चुनीलालने मुझे अपनी शालाके विषयमें लम्बा पत्र लिखा है।

उसमें आपके ऊपर निश्चित आक्षेप हैं। आप उनसे मिलकर उनकी शिकायतों को समझें और उन्हें सन्तुष्ट करें; फिर मुझे लिखें। इस तरह आपसे जितना माँग सकता हूँ, उतना ही माँग रहा हूँ।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (सी॰ डब्ल्यू॰ २८७५) की प्रतिसे।
सौजन्य : शारदाबहन फू॰ शाह।

३१३. पत्र : स्वामी आनन्दको

बुधवार
[९ अप्रैल, १९२४][१]

भाईश्री आनन्दानन्द,

तुम्हारे तीन पत्रोंका उत्तर नहीं दे सका हूँ। किन्तु क्या करूँ? उस बेचारे संयमीकी तरह मेरी भी यही स्थिति है कि ऊपर आकाश और नीचे धरती। आजके लेख में तुम्हें इस भाईका परिचय मिलेगा। तुम्हारे मनमें यह विचार एक क्षणके लिए भी क्यों आया कि मैं तुम्हारी प्रशंसा इसलिए करता हूँ कि मैं तुम्हें अपने से दूर मानता हूँ। वह तो मैंने तभी की होगी जब करना अनिवार्य हो गया होगा। जब अवसर आता है तब मैं अपनी प्रशंसा भी करता ही हूँ। मैंने बाकी प्रशंसा की है। देवदासकी प्रशंसा तो बहुत बार की है। अब बताओ कि कौन मेरे पास है और कौन दूर? क्या तुम ऐसा समझते हो कि महादेव और काकाके सम्बन्धमें सांकेतिक रूपमें कुछ कहने के अतिरिक्त अन्य कोई बात शोभा नहीं देती? मुझे इस बातका गर्व है कि इन सब मामलोंमें मुझे अनुपातका पूरा ध्यान रहता है। मैं अपने इस गर्वका त्याग नहीं कर सकता।

सत्याग्रह के इतिहास के सम्बन्धमें तुमने जैसा सुझाव दिया, मैंने वैसा ही किया है। सुझाव मुझे पसन्द आया। यदि पुस्तक बड़ी हो जाती तो भी ठीक न होता।

  1. ऐसा लगता है कि यह पत्र "सत्याग्रह और समाज-सुधार", १३-४-१९२४ के प्रकाशनके पूर्ववर्ती बुधवार, ९ अप्रैलको लिखा गया होगा।