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३०५. पत्र : मगनलाल गांधीको
रविवार, सुबह ३-३० बजे
[६ अप्रैल, १९२४ या उसके पश्चात्][१]
चि॰ मगनलाल,
इस चिट्ठीके साथ जो पत्र हैं उसमें राधा तथा कीकी बहनके[२] बारेमें कुछ खबरें मिलेंगी। राधाको मानसिक व्याधिने अच्छी तरह जकड़ लिया है। थोड़ी बातें की हैं। समय मिला तो खूब करूँगा। तीनों बीमारोंकी चारपाइयाँ खुलेमें मेरे पास पड़ी हुई हैं।
तुमने 'मराठा' में जो लिखा है, उसके विषयमें 'यंग इंडिया' में लिखने की बात सोच रहा हूँ। जब हम बातें करेंगे, तब अधिक स्पष्ट हो सकेगा। जो थोड़ा-बहुत सोचा है उससे तो ऐसा ही लगता है कि हमारा काम केवल हाथ कते सूतको बुननेवालोंको रोजी देना ही है।
बापूके आशीर्वाद
- मूल गुजराती पत्र (सी॰ डब्ल्यू॰ ५७८६) की फोटो-नकलसे।
- सौजन्य : नारणदास गांधी
३०६ तार : गोपाल कुरुपको
[बम्बई
६ अप्रैल, १९२४ या उसके पश्चात्][३]
[पण्डित गोपाल कुरुप
तिरुवाला
त्रावणकोर]
गांधी
- अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ८६८०) की फोटो-नकलसे।
- ↑ गांधीजीने सप्ताहिकोंमें नियमित रूपसे लिखना ३ अप्रैल, १९२४ के बादसे आरम्भ किया था। इसके अनुसार पहला रविवार ६ अप्रैलको पड़ा था।
- ↑ जे॰ पी॰ कृपलानीकी बहन।
- ↑ यह गोपाल कुरुपके ५ अप्रैल, १९२४ को त्रावणकोरसे प्रेषित और ६ अप्रैलको प्राप्त इस तारके उत्तरमें भेजा गया था : "अपनी मलयालमकी पुस्तक स्वराज्य गीता आपको समर्पित करना चाहता हूँ। कृपया आशीर्वाद और अनुमति दें।"