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२७०. पत्र : पॉल रिचर्डको
पोस्ट अन्धेरी
५ अप्रैल, १९२४
प्रिय मित्र,
आपके ३ मार्च के पत्रके[१] लिए धन्यवाद। आपका लम्बा पत्र पानेसे कुछ समय पहले मुझे आपका वह छोटा पत्र[२] भी मिल गया था जिसमें आपके तथा श्री रोमां रोलांके हस्ताक्षर थे।
जबसे मैं रिहा हुआ हूँ, अपना मार्ग खोजनेकी कोशिश कर रहा हूँ। परिस्थिति में बहुत परिवर्तन हो गया है तथापि में एक बात निश्चित रूप से जानता हूं। अहिंसामें मेरी अगाध श्रद्धा है। आप वहाँ इतना ही कर सकते हैं कि आप जहाँ-जहाँ जायें, अहिंसा के सत्यका प्रचार करें।
हृदयसे आपका,
मो॰ क॰ गांधी
श्री पॉल रिचर्ड
१३८ रूट द शिने
जेनेवा
- अंग्रेजी पत्र (जी॰ एन॰ ८७१) की फोटो-नकलसे।
- ↑ पॉल रिचर्डने अपनी मध्यपूर्वं तथा दक्षिण-यूरोपको यात्राका वर्णन करते हुए लिखा था कि मैं अपने शरीरपर खादी धारण करके पूर्वसे पश्चिम पहुँच रहा हूँ। रिचर्ड रोमाँ रोलांसे स्विट्जरलैंड में मिले थे।
- ↑ पत्रपर १७ फरवरीको तारीख पड़ी है। उसमें पॉलने लिखा है : 'हम लोगोंके स्नेह तथा सराहना स्वीकार करें। आप समरभूमिकी कड़ी धूप और जेलकी शीतल छायाका अनुभव करनेके पश्चात् फिर स्वतन्त्र हो गये हैं। ईश्वर करे भारत अबकी बार तैयार हो जाये और दिग्भ्रान्त यूरोप भी आपका सन्देश ध्यान से सुने। आपको भारतके प्रति प्रेम है और मानव समाजकी सेवाका चाव है।
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