२६३. तार : वाईकोम सत्याग्रहियोंको
[४ अप्रैल, १९२४]
अत्यधिक व्यस्तताके कारण लिखनेमें असमर्थ। आपका ढंग शानदार है। जैसे आपने प्रारम्भ किया है वैसे ही जारी रखें।
- [अंग्रेजीसे]
- 'हिन्दू' की कतरन (एस॰ एन॰ १०३००) से।
२६४. पत्र : च॰ राजगोपालाचारीको
पोस्ट अन्धेरी
४ अप्रैल, १९२४
मुझे आपका अत्यन्त हृदयस्पर्शी पत्र मिला। सुबहको उस चिट्ठीके तुरन्त बाद मैं अपने-आप शान्त हो गया था। रामू द्वारा बिना झिझक मेरा सुझाव स्वीकार कर लेनेसे मेरे हृदय में शान्तिके साथ प्रसन्नता भी पैदा हुई। मोतीलालजी और अन्य लोगों के साथ जो कुछ बातचीत चल रही है, उसे सम्मेलन नहीं कहा जा सकता। हालांकि मैंने स्वयं 'यंग इंडिया' के[१] स्तम्भों में इस शब्दका प्रयोग किया है, हम लोग छुटपुट चर्चा कर रहे हैं। हकीमजीने केवल हिन्दू-मुस्लिम समस्यापर बातचीत की। वे पहले ही जा चुके हैं। मालवीयजी अभी यहीं हैं। वे भी केवल हिन्दू-मुस्लिम एकतापर बात करते हैं। केवल मोतीलालजी कौंसिल प्रवेशके प्रश्नमें दिलचस्पी रखते हैं, क्योंकि जाहिर है, उन्हें अपनी नीति इसीके अनुसार निर्धारित करनी है। किन्तु हम किसी फैसलेपर नहीं पहुँचे हैं और मैं इसमें जल्दबाजी नहीं करूँगा। मैं देखता हूँ कि ऐसी अवस्था में मैं एक आरजी वक्तव्य भी नहीं दे सकता। सम्मेलन या बातचीत के बारेमें मुझे इतना ही कहना है।
मुझे सुझाव दिया गया है कि तरुण कार्यकर्त्ताओंका सम्मेलन बुलाये बिना मुझे अपने विचारोंको घोषित नहीं करना चाहिए। यह विचार मुझे ठीक लगा है। मैं गम्भीरतापूर्वक सोच रहा हूँ कि कांग्रेसके कार्यक्रममें दिलचस्पी रखने और मुझे अपनी रायसे लाभान्वित करनेवाले सभी कार्यकर्त्ताओंको 'यंग इंडिया' के जरिए इसी महीने किसी दिन आनेका एक आम निमन्त्रण[२] जारी कर दूँ। कृपया इस विषयपर तार