२५९. पत्र : छगनलाल गांधीको
गुरुवार [३ अप्रैल, १९२४][१]
तुम्हारे पत्र मिले। तुमने काशीके सम्बन्धमें जो कुछ लिखा वह मैंने समझ लिया। मैंने चिरंजीव प्रभुदासको डा॰ दलालको दिखाया था। कल पूनासे एक प्रसिद्ध वैद्य आये थे, उनको भी दिखाया। दोनोंको यह ठीक लगा कि वह दूधपर ही रह रहा है। इस समय वह साढ़े चार [कच्चा] सेर दूध पीता है। उसमें अब पहलेसे अधिक शक्ति है। डा॰ देशमुखने भी उनकी परीक्षा की थी। उनका मत भी यही है। मैंने यहाँके समुद्रके सम्बन्धमें सब तरहकी पूछताछ कर ली है। इसमें तो हजारों लोग स्नान करते हैं। तुमने यह बात बरसोवाके[२] समुद्र के सम्बन्धमें सुनी होगी। यहाँ तो सभी लोग निर्भय होकर स्नान करते हैं।
बापूके आशीर्वाद
- गांधीजी के स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (एस॰ एन॰ ८६५८) की फोटो-नकलसे।
२६०. पत्र : मगनलाल गांधीको
गुरुवार [३ अप्रैल, १९२४][३]
तुम्हारे पत्र मिले हैं। तुमने जो कुछ लिखा है उसके सम्बन्धमें मुझे जो भी स्पष्टीकरण सूझेगा उसे मैं 'नवजीवन' अथवा 'यंग इंडिया' में दूँगा। डा॰ दलालने राधा और अन्य रोगियोंकी शरीर-परीक्षा भली-भांति कर ली है। इनके अतिरिक्त पूनाके एक वैद्य भी यहाँ आये हुए हैं। उनकी दवा पीनेसे उसमें शक्ति आती जाती है। वह मेरे पास ही सोती है। अधिक ब्योरा नहीं लिखता। अभी राम-दासको अपनेसे दूर नहीं भेजूँगा। मैं उसे स्वयं भी थोड़ा समय प्रसन्नतापूर्वक दूँगा। मैंने सुरेन्द्रसे बात तो कर ली है। अब वे जब आ जायें तब ठीक।