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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय



अधिक से अधिक मईके अन्ततक मैं इस पतेपर रहनेकी आशा करता हूँ। किन्तु सम्भव है मध्य मईके आसपास मैं साबरमती चला जाऊँ।

तुम सबको प्यार,

हृदयसे तुम्हारा,

श्री हेनरी एस॰ एल॰ पोलक
लन्दन
अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ८५९७) की फोटो-नकल तथा सी॰ डब्ल्यू॰ ५१५६ से।
 

२२९. पत्र : सर दिनशा माणेकजी पेटिटको

पोस्ट अन्धेरी
२७ मार्च, १९२४

प्रिय सर दिनशा,

आपने अडाजानके स्वर्गीय सोराबजीका[१] नाम शायद सुना होगा। जैसा कि आपको मालूम होगा वे बहुत समयतक दक्षिण आफ्रिकामें रहे थे। वे सबसे अधिक लम्बी कैद काटनेवाले सत्याग्रहियों में से थे। वे बैरिस्टर होनेके बाद सार्वजनिक कार्यकरने के लिए दक्षिण आफ्रिका चले गये। उनका खर्च एक मित्र देते थे। अब उनके परिवारमें उनकी विधवा पत्नी और एक पुत्री है। श्री पालनजी सोराबजी परिवारके निकट सम्बन्धी हैं। उनकी विधवा पत्नी अपनी पुत्रीको पढ़ानेके खयालसे इस समय उसको लेकर बम्बईमें रह रही हैं। माँको बहुत ज्यादा मकान किराया देना पड़ता है। उन्होंने मुझे बताया है कि आपके पास कुछ अच्छे मकान हैं, जिन्हें आप बहुत कम किरायेपर गरीब पारसियोंको देते हैं। आप उन मकानोंको किन शर्तोंपर किरायेपर देते हैं यह मैं नहीं जानता। श्री सोराबजी बहुत कम पैसा छोड़ गये हैं। मेरे खयालसे यह रकम एक हजारसे कम ही थी। मेरे जेल जानेसे पहले यह पूरी रकम इस विधवाको सौंप दी गई थी। जिन शर्तोंपर ये मकान गरीब लोगोंको किराये पर दिये जाते हैं उनका खयाल रखते हुए यदि आप इनमें से एक मकान श्री सोराबजीकी पत्नीको किरायेपर दे दें तो यह मुझपर व्यक्तिगत अनुग्रह होगा। स्वर्गीय सोराबजी मेरे अत्यन्त प्रिय साथियोंमें से थे। वे मेरे अत्यन्त आत्मत्यागी पारसी मित्रोंमें से थे। उनके निर्मल चरित्रसे स्वयं श्री गोखले इतने प्रभावित हुए थे कि उन्होंने उनसे अपने मण्डलका सदस्य बननेका अनुरोध किया था और यदि वे जीवित रहते और भारत वापस आते तथा श्री गोखले भी जीवित होते तो बहुत सम्भव है कि श्री सोराबजी उनके मण्डल में सम्मिलित हो जाते। यह सब मैं कुछ इस खयाल-

  1. देखिए खण्ड १४, पृष्ठ ४८९-९०, ५०२।