मेहमानोंकी देखभाल नहीं कर पाता। और मैं अगर अपने मेहमानोंकी तरफ जरूरत के मुताबिक तवज्जह न दे पाऊँ, तो मैं उन्हें आनेकी दावत ही नहीं दूँगा। मैं आपको तो बड़ी खुशीसे आपकी मर्जीपर छोड़ सकता हूँ, और सोच सकता हूँ कि मैंने काफी कुछ कर लिया, पर बेगम साहिबा के बारेमें तो मैं ऐसा महसूस नहीं कर सकता।
अब आप मेरे बारेमें सभी कुछ जान गये हैं। इसलिए लिखिए कि आप कब आ रहे हैं। हफ्ते भरके अन्दर अन्दर यहाँ कुछ नेता लोग आ रहे हैं; मैं चाहता था कि आप भी उनके साथ बहस-मुबाहिसे में शामिल हो सकते। शौकतसे कहिए कि उन्हें खाट पकड़ लेनेका कोई हक नहीं है। उनके सामने सबसे अच्छा रास्ता यही है कि वे जल्द से जल्द चंगे हो जायें।
- हयातका क्या हाल है? उसे मेरे एक पत्रका जवाब अभी देना है।
- आप सबको प्यार,
स्नेहाधीन,
अलीगढ़
- अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ८५८४) की फोटो-नकल तथा सी॰ डडब्ल्यू॰५३४५ से।
२१५. पत्र : स्वतन्त्रता-संघके बाल-सदस्योंको
पोस्ट अन्धेरी
२५ मार्च, १९२४
तुम लोगोंने सात दिन और रात लगातार चरखा चलाकर जो सूत काता उसका पार्सल मिला; मुझे बहुत प्रसन्नता हुई। अखण्ड कताईका यह विचार बहुत प्रिय लगा। मुझे विश्वास है कि यदि सब राष्ट्रीय शालाओंके लड़के ऐसा ही उत्साह दिखायें, जैसा तुम सबने दिखाया है, तो हम आजकी अपेक्षा स्वराज्यके बहुत अधिक निकट पहुँच जायेंगे।
आशा है, तुम सूत कातनेके लिए नित्य थोड़ा समय सुरक्षित रखना अपना धार्मिक कृत्य मानोगे।[१]
तुम्हारा हितैषी,
राष्ट्रीय शाला
- अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ८५८५) की फोटो-नकल तथा सी॰ डब्ल्यू॰ ५१४९ से।
- ↑ देखिए "टिप्पणियाँ", ३-४-१९२४।