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वक्तव्य : समाचारपत्रोंको
आफ्रिकियों, मलय लोगों और वतनी लोगोंने हजारोंकी तादादमें इकट्ठे होकर श्रीमती सरोजिनी नायडूको विधेयकके विरुद्ध भारतीयोंका समर्थन करनेका आश्वासन दिया। भारतीय कभी जातीय पृथक्करणके आगे सिर नहीं झुकायेंगे। भारतीय जनताको बतला दीजिए। आप जो भी ठीक समझें, कदम उठायें। श्रीमती सरोजिनी नायडूने लोगोंको काफी प्रभावित किया है और बहुत सारे लोगों को अपना समर्थक बना लिया है। श्रीमती नायडूने दक्षिण आफ्रिकासे अपने प्रस्थानकी तिथि ३० अप्रैल तक स्थगित कर दी है, क्योंकि इस उद्देश्यके हित में अभी यहाँ उनकी बहुत जरूरत है।

यह खबर चौंका देनेवाली है। यह दक्षिण आफ्रिकाके लिए भी इतनी ज्यादा बुरी है कि इसपर विश्वास करनेको मन नहीं करता। मैं यह बतलानेका प्रयास कर ही चुका हूँ कि विधेयकके क्षेत्राधिकारसे केपको क्यों अलग रखा जा रहा है। यदि केपको अलग रखनेके सम्बन्धमें रायटर द्वारा तारसे भेजी गई सूचना सही है, तो ऊपरके इस तारमें कहीं कुछ गलती रह गई है, या फिर उसमें दी गई सूचना अन्य तीनों प्रान्तों अर्थात् ऑरेंजिया, ट्रान्सवाल और नेटालपर ही लागू होती है। स्थिति इस प्रकार होगी—केपमें तो केपके भारतीय अब भी विधेयकके क्षेत्राधिकारसे विमुक्त रहेंगे, लेकिन अन्य प्रान्तोंमें यह विधेयक केवल भारतीयोंपर लागू होगा। विमुक्तियाँ देनेकी बात आसानीसे समझ में आ जाती है क्योंकि वतनी और मलय लोगोंके इतने स्पष्ट जातीय पृथक्करणका विचार नया ही है। हर यूरोपीय घरमें दक्षिण आफ्रिकाके वतनी लोग घरेलू नौकरोंके रूपमें मौजूद हैं। मैं पिछली बार बतला चुका हूँ[१] कि केपको छोड़कर अन्य सभी जगह मलय लोगोंकी संख्या लगभग नगण्य है। इसलिए हमारे सामने जो स्थिति आज यथार्थ रूपमें खड़ी है वह यह है कि यह विधेयक केवल भारतीयोंके खिलाफ है और इसका आशय भारतीयोंका जातीय पृथक्करण ही नहीं, बल्कि परोक्ष तरीकेसे उनको निकाल बाहर करना भी है। श्रीमती सरोजिनी नायडूकी दक्षिण आफ्रिकाकी यात्रा और उनकी प्रेरक उपस्थिति निस्सन्देह वहाँ बसे हुए भारतीयोंके हृदयोंको निरन्तर संघर्ष करते रहने के लिए प्रेरित करेगी। उनकी उपस्थिति वहाँ यूरोपीयों और भारतीयोंको एक ही मंचपर लानेका काम भी कर रही है। लेकिन सुरक्षाकी इस मिथ्या भावनाको मानकर कि बस अब तो मँजे-तपे भारतीयोंके बीच पहुँचकर श्रीमती नायडू सब-कुछ करा ही लेंगी, भारतको निष्क्रिय नहीं बन जाना चाहिए। आखिर, दक्षिण आफ्रिकाके सुसंस्कृत यूरोपीय भी सज्जन हैं, और मुझे इसमें जरा भी शक नहीं है कि श्रीमती नायडूके अनेक और अतुलनीय गुणोंके कारण लोग हर तरहसे उनकी ओर आकर्षित भी हो रहे हैं, उनकी बात सुनी जा रही है। यह तो ठीक है। लेकिन दक्षिण आफ्रिकाके यूरोपीयों-की एक अपनी पूर्व निर्धारित और निश्चित भारतीय विरोधी नीति भी तो है। जनरल स्मट्स एक मँजे हुए राजनीतिज्ञ हैं। जरूरत पड़नेपर वे बहुत ही मीठा बोल सकते हैं, लेकिन वे बखूबी जानते हैं कि उन्हें क्या करना है। हमें बिलकुल स्पष्ट

  1. देखिए "दक्षिण आफ्रिकामें भारत विरोधी आन्दोलन", १४-२-१९२४।
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