करेंगे। आपने 'नवाकाल' के जिस अंकका उल्लेख किया है, कृपया उसकी एक प्रति[१] निशान लगाकर मुझे भेज दें।
हृदयसे आपका,
'लोकमान्य' आफिस
२०७, रास्तीबाई बिल्डिंग, गिरगाँव
- अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ८५४४) की फोटो नकल तथा सी॰ डब्ल्यू॰ ५१२९ से।
१८३. पत्र : सरदार मंगलसिंहको
पोस्ट अन्धेरी
२० मार्च, १९२४
- आपका पत्र पाकर खुशी हुई।
आशा है मेरा बधाईका तार[२] समयपर मिल गया होगा। अभीतक तो मैं सार्वजनिक रूपमें कुछ कहनेसे विरत रहा हूँ, क्योंकि मैं नहीं जानता कि मेरे वहाँके मित्र मुझसे इस मामलेमें क्या अपेक्षा रखते हैं। किन्तु आपका पत्र मिलनेपर मैं उसका प्रयोग करना चाहता था ताकि जत्थेके[३] शानदार बरतावका उचित उल्लेख कर सकूँ। लेकिन इस आशंकासे कि आप मेरे इस कथनको ठीक मानेंगे या नहीं, मैंने एक स्वतन्त्र सन्देश[४] लिखा है जिसकी एक नकल में इस पत्रके साथ भेज रहा हूँ। कृपया मुझे आगेकी प्रगतिसे सूचित करते रहें।
- कृपया अन्य मित्रोंको मेरी याद दिलायें।
हृदयसे आपका,
"अकाली-ते-परदेशी"
अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ८५४१) की फोटो-नकल तथा सी॰ डब्ल्यू॰ ५१२७ से।
- ↑ ऐसा लगता है कि समाचारपत्रकी एक प्रति यादमें गांधीजी को भेजी गई थी। देखिए "पत्र : आर॰ एन॰ माण्डलिकको", २८-३-१९२४।
- ↑ देखिए "तार : शुक्लको", १६-३-१९२४को या उसके पश्चात्।
- ↑ आशय अकालियोंकि उस दूसरे शहीदी जत्थेसे है जो मार्चके मध्यतक जैतोंके पासवाले गंगसर गुरुद्वारे पहुँचा था और जिसने शान्त रहकर अपनेको गिरफ्तार होने दिया था।
- ↑ उपलब्ध नहीं है।