बनाने की दिशामें सर्वोत्तम सेवा होगी। वे समय-समयपर कांग्रेस कमेटीको जो रिपोर्ट भेजेंगे उसे वे मन्त्रीको भेजनेसे पहले शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक समितिके प्रधानको तो दिखा ही लिया करेंगे।
आप श्री पणिक्करके रहने और सामान्य सुख-सुविधाको व्यवस्था करनेकी कृपा करें। कृपया आप उन्हें श्रीमती गिडवानी और श्रीमती किचलूसे भी मिला दें।
उम्मीद है कि सब काम सुचारु रूपसे चल रहा होगा। आपके साथ जो मित्र आये थे, उन्हें मेरा स्मरण दिलाइए। आशा करता हूँ, आप यथासमय मुझे पत्र लिखगे। कहना न होगा कि यह बात सुनकर मुझे कितनी खुशी हुई है कि जब जत्थे के लोगोंको गिरफ्तार किया जाने लगा तो उन्होंने चूँ तक नहीं की और बहुत ही शोभनीय ढंगसे[१] गिरफ्तार हो गये।
हृदयसे आपका,
मो॰ क॰ गांधी
अमृतसर
- अंग्रेजी पत्र (एस॰ एन॰ ९९२९) की फोटो-नकलसे।
१६६. तार : शुक्लको[२]
[१६ मार्च, १९२४ को या उसके पश्चात्]
जत्थे द्वारा शोभनीय और शान्तिपूर्ण ढंगसे आत्मसमर्पण करनेके लिए समाजको बधाई। एन्ड्रयूज भी बधाई देते हैं। पणिक्कर मंगलवारको वहाँ पहुँच रहे हैं। कृपया मिलें।
गांधी
- अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ९९२८) की फोटो नकलसे।
- ↑ १७ मार्च, १९२४ को सरदार मंगलसिंहने आम जनताके दिलोंमें फैली हुई गलतफहमीको दूर करनेके लिए गांधीजी को सविस्तार पत्र द्वारा सूचित किया कि जत्थेको पहले यह निर्देश दिया गया था कि अपनी जगह दृढ़तासे बैठे रहो और स्वेच्छासे अपने-आपको गिरफ्तार मत होने दो। किन्तु इसकी जगह बादमें उनसे "खुशी-खुशी आत्म-समर्पण" करनेके लिए कहा गया और जत्थेके ५०० लोगोंने ऐसा ही किया। उन्होंने "जत्थेके अद्भुत आचरण, अदम्य उत्साह और असाधारण संयमका" भी वर्णन किया और गांधीजी से अनुरोध किया कि वे इसपर कुछ पंक्तियाँ लिखें।
- ↑ यह तार अकाली सहायक ब्यूरोके श्री शुक्ल द्वारा १५ मार्चको दिये गये तारके उत्तर में भेजा गया था, जो गांधीजी को १६ मार्च, १९२४ को मिला था। उसमें कहा गया था : "दूसरे शहीदी जत्थेने गिरफ्तारीका आदेश पाकर सराहनीय ढंगसे अपनेको गिरफ्तार करा दिया। अमृतसरके सरकारी पोस्टर में उनके शान्तिपूर्ण व्यवहारको स्वीकार किया गया है।"