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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है। इसलिए उसमें सभी प्राणियोंका खयाल नहीं रखा जाता और उसमें प्रगति करते हुए मानव-जीवनका बड़े पैमानेपर विनाश करनेमें भी संकोच नहीं किया गया है। उसका सिद्धान्त जिसकी लाठी उसकी भैंस है। वह संस्कृति तत्त्वतः व्यक्तिवादी है। इसका यह अर्थ नहीं कि भारतीयोंको पश्चिमसे कुछ भी सीखनेको नहीं रहता, क्योंकि यद्यपि पश्चिममें जिसकी लाठी उसकी भैंसके सिद्धान्तको स्वीकार कर लिया गया है, फिर भी वहाँ मानवीयताका सर्वथा लोप नहीं हुआ है। एक झूठे आदर्शको सही मानकर उसका अन्धाधुन्ध अनुसरण करते रहने से पश्चिममें अनेक लोगोंकी आँखें खुल गई हैं और उन्होंने यह समझ लिया है कि उनका वह आदर्श मिथ्या है। मैं यह चाहता हूँ कि भारत प्राचीन परम्पराको आँख बन्द करके मानते चले जानेकी बजाय इस तरहकी लगनका सत्यकी खोजके हितार्थ अनुकरण करे। लेकिन भारत जबतक स्वतन्त्र नहीं हो जाता और जबतक यह नहीं समझ लेता कि विश्वमें उसकी संस्कृतिका स्थान बहुत महत्त्वपूर्ण है, और चाहे कुछ भी हो जाये उसे उसकी रक्षा अवश्य करनी है तबतक बिना किसी हानिकी आशंका के वह ऐसे अनुकरणमें भी नहीं पड़ सकता। भारतमें अंग्रेजों द्वारा पश्चिमी सभ्यताके लाये जानेका परिणाम हुआ है—ब्रिटेनके तथाकथित लाभके लिए भारतकी सम्पत्तिकी लूट। इससे हजारों लोग भुखमरीकी दशा में पहुँच गये हैं और एक राष्ट्रका राष्ट्र लगभग पुंसत्व खो बैठा है।

पूर्वोंक्त कार्यक्रम आसन्न विनाशको पश्चिमी तरीकोंसे नहीं, वरन् भारतीय तरीकोंसे अर्थात् बिलकुल नीचेसे आन्तरिक सुधार और आत्मशुद्धि करके रोकनेका एक प्रयत्न है। अस्पृश्यता के अभिशापको दूर करना उस पापका प्रायश्चित्त करना है जो हिन्दुओंने अपने ही धर्मके लोगोंके पाँचवें हिस्सेको हीन बनाकर किया है। उत्तेजक पेयों और द्रव्योंके अभिशापको मिटानेसे न केवल राष्ट्र शुद्ध होता है, वरन् यह एक अनैतिक शासन प्रणालीको लगभग २५ करोड़ रुपये देनेवाले राजस्वके एक अनैतिक साधनसे वंचित करता है। हाथ-कताई और बुनाईके पुनरुद्धारसे भारतकी हजारों झोपड़ियों में फिर एक पूरक उद्योग स्थान पा जायेगा, और प्राचीन भारतीय कलाका पुनरुत्थान होगा, पतनकारी दरिद्रता दूर होगी और अकालकी सम्भावनासे अपने-आप निश्चिन्तता प्राप्त हो जायेगी। साथ ही इससे ब्रिटेन भारतीयों के शोषण के सबसे प्रबल प्रलोभनसे मुक्त हो जायेगा, क्योंकि यदि भारत विदेशी वस्त्र और विदेशी मशीनोंका आयात किये बिना अपना काम चला सके तो उसके और ब्रिटेनके बीच के सम्बन्ध स्वाभाविक और लगभग आदर्श बन जायेंगे। तब वे स्वेच्छापूर्ण साझेदारी-का रूप ले लेंगे। जिसका परिणाम पारस्परिक और मोटे तौरपर समस्त मानव-जातिका लाभ होगा। भारत के विभिन्न धर्मावलम्बियों में एकता होनेसे ब्रिटेन फूट डालकर शासन करनेकी अनैतिक नीतिपर आचरण करनेसे बाज आयेगा और यदि शोषण और पतनका प्रतिरोध करने में सफलता मिल जायेगी तो सम्भव है इस उदाहरणका संसारमें अनुकरण होने लगे।

इस कार्यक्रमपर अमल करने में निस्सन्देह त्रुटियाँ हुई हैं और हमारे अनुमान गलत साबित हुए हैं। खेदजनक घटनाएँ भी हुई हैं, लेकिन मैं दृढ़तापूर्वक कहता हूँ कि