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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हमारी ओरसे कार्रवाई अवश्य ही पूरी तरह नम्रतायुक्त रहेगी। मैं इस तरीकेको अपनाते में होनेवाली कठिनाइयोंको जानता हूँ। अधिकारी हमें थकानेके लिए अपनी छल-छद्म भरी चालें निरन्तर जारी रख सकते हैं। लेकिन यदि हमारा यह दावा हो कि हम समष्टिरूपमें थककर बैठनेवाले लोग नहीं हैं तो यह कठिनाई जाती रहती है। चूँकि अहिंसा ईश्वर में अडिग विश्वास और शुद्ध अच्छाईके आग्रहपर निर्भर करती है, अतः उसमें पराजित होने या थकनेकी कोई बात ही नहीं होती। जिस योजनाका सुझाव मैंने दिया है, यदि वह अपनाई जाये तो कितने ही लोग किसी भी समय राज्यमें जा सकते हैं। इसे कार्यरूप देनेपर हम देखेंगे कि कोई भी सत्ता ऐसे दृढ़ निश्चयी लोगों के साथ अधिक समयतक हरगिज खिलवाड़ नहीं कर सकती। जो जत्था जा रहा है उसके बारेमें अभी इतना ही काफी है। वर्त्तमान पैंतरेबाजी समाप्त हो जानेपर मैं पूरी स्थितिपर पुनर्विचार करनेकी राय दूँगा। जहाँतक मैं जानता हूँ अखण्ड पाठ आन्दोलनका उद्देश्य यह है कि सिख समाजके इस स्थानपर अखण्ड पाठ करने के अधिकारपर जोर दिया जाये जो. . .[१] को रोका गया था और उस हकको कायम रखनेके लिए जितनी बार भी समाज जरूरी समझे अखण्ड पाठ करे। अधिकारी कहते हैं कि उनका उद्देश्य अखण्ड पाठको रोकना नहीं है; किन्तु वे उसकी आड़ में बाहरसे बहुत बड़ी संख्यामें ऐसे सिखोंको इकट्ठा नहीं होने देंगे, जो महाराजा नाभाके बारेमें खुला या गुप्त प्रचार करें और इस तरह राज्यमें उत्तेजना पैदा करें और उसे कायम रखें। इस आपत्तिका जवाब देनेके लिए मैं समितिको सलाह देना चाहता हूँ कि वह यथासम्भव स्पष्ट शब्दोंमें यह घोषणा करे कि जत्था भेजनेका उद्देश्य केवल उपर्युक्त अधिकारका उपयोग करना है और अखण्ड पाठकी आड़ में नाभा राज्य में राजनैतिक प्रचार करने की उसकी कोई इच्छा नहीं है; किन्तु साथ ही समिति महाराजा नाभाके हकोंपर जोर न देने और नाभाके सवालपर आन्दोलन न करने के लिए किसी भी प्रकार बँधी हुई नहीं है। लेकिन वह आन्दोलन उसके अपने औचित्यके आधारपर चलाया जायेगा और अखण्ड पाठके मामलेसे उसका कोई सरोकार नहीं होगा। उस हालत में समिति २५ लोगोंका जत्था भेजना स्वीकार कर लेगी; किन्तु यह हरगिज नहीं मानेगी कि शासनको जत्थेके लोगोंकी संख्या सीमित करनेका कोई अधिकार है। यह केवल उसका स्वेच्छापूर्वक किया गया काम होगा और सन्देह दूर करनेके खयालसे ही किया जायेगा।

परन्तु यदि मेरी राय मानी जाये तो फिलहाल कोई जत्था नहीं भेजा जाना चाहिए बल्कि किसी अन्य व्यक्ति द्वारा राज्यके अधिकारियोंसे इस दृष्टिसे बातचीत की जानी चाहिए कि गलतफहमी दूर हो और बातचीतका बन्द रास्ता खुले।[२] यदि तदनुसार फिलहाल ५०० का जत्था भेजना मुल्तवी कर दिया जाये और ऊपर

  1. साधन-सूत्र में तारीख नहीं दी गई। यह तारीख २१ फरवरी, १९२४ हो सकती है। देखिए "खुली चिठ्ठी : अकालियोंके नाम", २५-२-१९२४।
  2. साधन-सूत्र में इस अनुच्छेदके साथ दो पाद-टिप्पणियाँ हैं : १. 'सत्य और अहिंसा', और २. 'पण्डित मालवीयसे निवेदन'।