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१२५. वक्तव्य : अकाली आन्दोलनके सम्बन्ध में

[पूना]
४ मार्च, १९२४

मौजूदा अकाली आन्दोलनके स्वरूप और फलितार्थो तथा उद्देश्य प्राप्ति के लिए अपनाये जानेवाले तरीकोंके बारेमें यदि मैं पूरी तरह आश्वस्त हो जाऊँ तो मैं तन-मनसे आन्दोलनमें भाग लेने और यदि आन्दोलनके मार्गदर्शनके लिए जरूरी हो तो पंजाब में जमकर बैठनेके लिए भी तैयार हूँ। मैं जिन बातोंके बारेमें आश्वासन चाहता हूँ वे ये हैं :

१. अकालियोंकी शक्ति।
२. (क) एक स्पष्ट ज्ञापन-पत्र जिसमें अपनी कमसे कम माँगकी घोषणा कर दी जाये। मुझे मालूम हुआ है कि यह माँग गंगसर गुरुद्वारेमें अखण्ड पाठकी है। सिख खुले तौरपर और सच्चे दिलसे घोषणा करें कि अखण्ड पाठ आन्दोलनका कोई राजनीतिक उद्देश्य नहीं है और वे उसके द्वारा नाभाके महा- राजको[१] फिर गद्दी दिलानेका प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष किसी भी ढंगका आन्दोलन नहीं करना चाहते। महाराजको फिर गद्दी दिलानेके सिलसिले में अकाली जो आन्दोलन करना चाहते हैं वह स्वतन्त्र आधारपर चलाया जायेगा और वह सर्वथा एक अलग आन्दोलन होगा।
(ख) गुरुद्वारा नियन्त्रण आन्दोलन के अन्तर्गत विवादास्पद गुरुद्वारोंके नियन्त्रण या अधिकारके मामले पंचोंके सुपुर्द किये जाने चाहिए। जहाँतक ऐतिहासिक गुरुद्वारोंका सवाल है यह माना जायेगा कि ऐसे सभी गुरुद्वारे शि॰ गु॰ प्र॰ समिति[२] के नियन्त्रणमें ही रहने चाहिए। किन्तु वास्तवमें कोई गुरुद्वारा ऐतिहासिक है या नहीं, इस बातका फैसला पंचोंपर छोड़ दिया जायेगा और इसे सिद्ध करने की जिम्मेदारी शि॰ गु॰ प्र॰ समितिकी होगी।
अन्य सभी गुरुद्वारोंके सम्बन्ध में विवादास्पद तथ्य पंच फैसलेसे तय होंगे।
ऐसे गुरुद्वारोंपर जिस पक्षका कब्जा हो वह यदि शि॰ गु॰ प्र॰ समितिको नियन्त्रण सौंपनेसे या विवादास्पद विषयको पंच-फैसलेके लिए देनेसे इनकार करे तो अकालियोंको इस बातकी आजादी होगी कि वे अहिंसाका सही अर्थोंमें पूरा पालन करते हुए सीधी कार्रवाई करें।
  1. १९२३ के आरम्भमें नाभाके महाराज द्वारा गद्दी छोड़ देनेपर भारत सरकारने राज्यका प्रशासन अपने हाथमें ले लिया था। महाराजाने गद्दी पड़ोसी राज्य पटियालाके साथ हुए झगड़े के कारण छोड़ी थी। शि॰ गु॰ प्र॰ समितिका कहना था कि महाराजाने ऐसा इच्छापूर्वक नहीं किया और उसकी यह मांग थी कि महाराजाको फिर गद्दीपर बिठाया जाये। देखिए इंडिया इन १९२३-२४।
  2. शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक समिति; सिखोंके धार्मिक मामलोंकी देखभाल करनेवाली अधिकृत संस्था।