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पत्र : जमनालाल बजाजको

रहे। मेरी तो सलाह यह है कि वह किसी काममें लग जाये और एक वर्षका अनुभव प्राप्त करने के बाद ही सगाईंका विचार करे।

धनी माँ-बापकी लड़की शीलवती हो तो भी जबतक वह अपनी इच्छासे गरीबी पसन्द न करे तबतक रामदासको उससे शादी नहीं करनी चाहिए। यदि करता है तो यह खुदको दुःखी बनाने जैसा होगा और साथ ही लड़की तथा उसके माँ-बापको भी। सही और निरापद रास्ता तो मुझे यही लगता है कि किसी गरीब से गरीब परिवारकी कोई गुणवती लड़की ढूंढ़ी जाये। इसमें समय भी लगे तो कोई परवाह नहीं।

बाके प्रति में गलत मोहमें पड़ गया था। मैं समझता हूँ कि उसके प्रति [इस बातमें] कठोर रहना ही मेरा धर्म है। माँ-बापको अपने स्वार्थकी खातिर अपनी सन्तानकी प्रवृत्ति और इच्छामें रुकावट नहीं डालनी चाहिए। लेकिन कल तो मैंने उल्टे घड़ी-भर बाकी हाँ-हाँ भरी। मेरी सलाह है कि बाको कड़वा घूँट पीकर रामदासका वियोग भी सन्तोषके साथ बरदाश्त कर लेना चाहिए। रामदास राजगोपालाचारी-जैसे चरित्रवान् व्यक्ति के पास जाये और वहाँ सुखी रहे, इसके लिए बाको आशीर्वाद देना चाहिए। इसी में बाका परम श्रेय है। उसका पुत्र सद्गुणी है, इसीमें वह सन्तोष माने। रामदासको उनका साहचर्य प्राप्त हो, यही उचित है।

तुम अपनी इच्छासे मेरे दूसरे देवदास बने हो। अब सोचो तुमने कितनी बड़ी जिम्मेदारी ओढ़ी है। अब सभी लड़कोंकी इच्छाएँ तुम्हींको पूरी करनी पड़ेंगी। ईश्वर तुम्हारी सहायता करे। मैं तो तुम्हारे प्रेमका योग्य पात्र बननेकी कोशिश करता ही रहता हूँ।

अब तुम्हारी धार्मिक समस्याके बारेमें। जो अपवित्र विचारोंसे मुक्त हो गया, उसे मोक्ष प्राप्त हो गया समझो। मनसे अपवित्र विचारोंका सर्वथा नाश बड़ी तपश्चर्यासे सम्भव होता है। उसका एक ही उपाय है। मनमें जैसे ही कोई अपवित्र विचार आये, उसके मुकाबले पवित्र विचार लाकर खड़ा कर दो। यह ईश्वरकी कृपासे ही सम्भव है। यह कृपा तभी प्राप्त होगी जब चौबीसों घंटे ईश्वरका नाम जपते रहोगे और यह समझ लोगे कि वह अन्तर्यामी है। भले ही [आरम्भमें] रामनाम जीभपर हो और मनमें दूसरे विचार आते रहें, किन्तु रामनाम इतने प्रयत्नपूर्वक लेना चाहिए कि जो जीभपर है, अन्तमें वही हृदयमें प्रथम स्थान प्राप्त कर ले। इसके सिवा मन चाहे जितने हाथ-पैर मारे किन्तु एक भी इन्द्रियको उसके वशमें नहीं होने देना चाहिए। जो लोग इन्द्रियोंको मन जहाँ चाहता है वहाँ जाने देते हैं, उनका नाश ही हो जाता है। किन्तु यदि आदमी इन्द्रियोंको बलात् ही सही अपने काबूमें रखे तो वह किसी-न-किसी दिन अपवित्र विचारोंपर भी काबू पा ही लेगा। मैं तो जानता हूँ कि यदि आज भी मैं अपने मनके अनुसार इन्द्रियोंको चलने दूँ तो आज ही मेरा नाश हो जाये। अपवित्र विचार आनेसे विचलित नहीं होना चाहिए। प्रयत्नका सारा क्षेत्र हमारे लिए खुला पड़ा है। परिणाम ईश्वर के हाथमें है, इसलिए उसकी चिन्ता नहीं करनी चाहिए। जब मनमें अपवित्र विचार आये तो समझो कि तुम जानकीबाईके साथ बेवफाई कर रहे हो। और कोई भी साधु पति अपनी पत्नीके साथ बेवफाई नहीं कर सकता। तुम साधु पुरुष हो। सामान्य उपाय जानते ही हो। अल्पाहार ही