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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

पाठ बारहवाँ
प्रभुकी महिमा

'शान्ता और माधव, क्या तुम भाई-बहन कभी आकाशकी ओर देखते हो?'

शान्ता बोली : 'माँ, तुमने ही तो हमें सूरजका दर्शन करना सिखाया है। आकाशकी ओर देखे बिना सूरजके दर्शन कैसे हो सकते हैं?'

माधवने कहा : 'और क्या तुम यह भूल गई कि चाँदको छोटा-बड़ा होते तुम ही दिखाती हो? दूजका चाँद बहुत छोटा और पूनीका इतना बड़ा होता है। क्या उसे बिना देखे रहा जा सकता है?'

माँ बोली : 'अच्छी बात है, तो फिर बताओ कि आकाशमें तुम और क्या देखते हो?'

शान्ता : 'ये इतने सारे तारे! इनमें से कुछ मेरे पास हों, तो कितना मजा आये!'

माधव : 'दिनमें और रातमें कितनी ही बार बादल आकर सूरज, चाँद और तारोंको ढँक देते हैं और फिर चले जाते! माँ, कितनी ही बार यह सब देखने में बड़ा मजा आता है।'

माँ : 'जानते हो, इन सबको किसने बनाया है? और जिस पृथ्वीपर हम चलते हैं, उसे बनानेवाला कौन है?'

माधव : 'माँ, तुमने ही तो हमें सिखाया है कि इन्हें बनानेवाला ईश्वर है।'

शान्ता : 'और माँ तुम ही तो हमसे वह गीत बार-बार गवाती हो।' आओ, हम फिर उसे गायें :


"रचा प्रभु तूने यह ब्रह्माण्ड सारा;
प्राणोंसे प्यारा, तू ही सबसे न्यारा—रचा॰
तू ही भाई-बन्धु, तू ही जनक-जननी;
सकल जगत् में एक तेरा पसारा—रचा॰"

[गुजरातीसे]
बालपोथी, तथा (एस॰ एन॰ ८०८१) से।