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३६. सन्देश[१]

अहमदाबाद
१० मार्च, १९२२

मुझे आपसे[२] भी बहुत बड़ी आशा है और चाहता हूँ कि आप इस कामको उसी स्फूर्ति और साहसके साथ आगे बढ़ायें जैसे मैं अबतक करता रहा हूँ।

[अंग्रेजी से]
हिन्दू, १७–३–१९२२
 

३७. मुकदमा और अदालत में बयान

[अहमदाबाद
११ मार्च, १९२२]

शनिवार की दोपहरको सर्वश्री गांधी और बैंकरको असिस्टेंट मजिस्ट्रेट श्री ब्राउनके सामने पेश किया गया। शाहीबाग स्थित डिविजनल कमिश्नरके दफ्तर में अदालत बैठी। सरकारी वकील राव बहादुर गिरधारीलालने अभियोक्ता पक्षकी ओरसे पैरवी की।
पहले गवाह अहमदाबादके पुलिस सुपरिटेंडेंटने 'यंग इंडिया' में प्रकाशित चार लेखोंके विरुद्ध शिकायत दर्ज करनेके लिए बम्बई सरकारका प्रमाण-पत्र प्रस्तुत किया। ये लेख १५ जून, १९२१को "अराजभक्ति एक सद्गुण" शीर्षक, २९ सितम्बर को "राजभक्तिसे भ्रष्ट करनेका आरोप" शीर्षक, १५ दिसम्बरको "एक उलझन और उसका हल" शीर्षक और २३ फरवरी १९२२को "गर्जन-तर्जन" शीर्षकसे प्रकाशित हुए थे।[३] उन्होंने कहा कि अहमदाबादके जिला मजिस्ट्रेटने ६ तारीखको वारंट जारी किया था और मामला भी ब्राउनकी अदालत में भेज दिया गया था। इसी बीच सूरत और अजमेरके पुलिस सुपरिंटेंडेंटके पास भी वारंट भेज दिये गये थे, क्योंकि श्री गांधीके उन स्थानोंमें जानेकी आशा थी। मूल हस्ताक्षरित लेखों तथा जिन अंकों-में ये लेख प्रकाशित हुए थे, वे अंक भी सबूत के तौरपर पेश किये गये।
दूसरे गवाह बम्बई उच्च न्यायालय में अपील-विभागके रजिस्ट्रार श्री घराने 'यंग इंडिया' के सम्पादककी हैसियतसे श्री गांधी और अहमदाबाद के जिला मजिस्ट्रेट
  1. साबरमती जेल जानेके ठीक पहले गांधीजीने ये शब्द हिन्दूसे सम्बन्धित किसी एक व्यक्ति से कहे, जिन्होंने गांधीजीकी गिरफ्तारीका विवरण हिन्दूमें दिया।
  2. गांधीजीने पहले मौलाना हसरत मोहानीके प्रति अपना पूर्ण विश्वास प्रकट किया था।
  3. इन लेखों के लिए देखिए क्रमशः (१) खण्ड २०, पृष्ठ २२१–२२, (२) खण्ड २१, पृष्ठ २३०–३१ तथा (३–४) खण्ड २२, पृष्ठ ३०–३१ और ४८१–८२।