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३१. पत्र : न॰ चि॰ केलकरको

सत्याग्रहाश्रम
साबरमती
१० मार्च, १९२२

प्रिय श्री केलकर,
आपका पत्र मिला।

आप जानते ही हैं कि मेरी गिरफ्तारीके बारेमें अफवाहें जोरोंपर हैं, लेकिन यदि मैं गिरफ्तार न हुआ तो आपकी सूचना पाते ही मैं बम्बई आ जाऊँगा। यदि सरकार मुझे आराम करनेपर मजबूर करती है, जिसका मैं हकदार भी हो गया हूँ, तो मैं जानता हूँ कि आप आन्दोलनको आगे बढ़ाने के लिए जो कुछ भी कर सकते हैं, करेंगे। यों मैंने 'यंग इंडिया' में अपने लेख "यदि मैं पकड़ लिया गया" में जो कुछ कहा है, उससे अधिक मुझे कुछ भी नहीं कहना है। मैं कल अजमेरमें था; वहाँ मैंने खिलाफत के बारेमें कुछ सलाह दी थी। उसे मैं शायद लिख भी डालूँ। नहीं तो आप श्री छोटानी और अन्य लोगोंसे जान ही लेंगे ।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत न॰ चि॰ केलकर
पूना
दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ७९८४) की फोटो नकल से।

३२. पत्र : गोपाल मेननको

सत्याग्रहाश्रम
साबरमती
१० मार्च, १९२२

प्रिय गोपाल मेनन,
मैं तुम्हारी धारणाओंसे पूरी तरह अवगत हूँ।

मैं तुम्हारे नवीन प्रयासकी सफलता चाहता हूँ। काममें अत्यधिक व्यस्त होने के कारण मैं तो हिन्दुओं और मोपलाओं दोनोंको यही एक सन्देश[१] दे सकता हूँ कि वे अपनी आगेकी जिम्मेदारी समझें, गड़े मुर्दोंको उखाड़ने में न लगे रहें।[२] तुम अपने

  1. यह सन्देश गोपाल मेनन द्वारा कालीकटसे प्रकाशित एक नये पत्र नवीन केरलम्के लिए था और समाचारपत्रोंमें प्रकाशित किया गया था।
  2. अगस्त १९२१ के मोपला विद्रोहके लिए देखिए खण्ड, २१ १४ ४८-५०।