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टिप्पणीयाँ

प्रकट कर दिया है। जबतक यह हिंसाके तथा उससे सहानुभूति रखनेवालों के या उसके लिए उत्तेजित करनेवालों के दमनकी कोशिश कर रही थी, तबतक तो ठीक था। इसलिए मुझे तो कोई शक ही नहीं है कि सहयोगी भी सरकारके इस पागलपन के—अपने दुःख-दर्द दूर कराने के उद्देश्यसे उठाये गये आन्दोलनको दबाने के इस निरर्थक प्रयत्न के—खिलाफ आवाज उठायेंगे। किन्तु मैं अपने मित्रोंको यह चेतावनी दिये देता हूँ कि जबतक वे यह यकीन नहीं कर लेते कि सरकार सचमुच पश्चात्ताप कर रही है और जनताके दुःखोंके साथ सहानुभूति रख रही है तबतक वे ऐसे सम्मेलनका खयाल न करें। युवराज के स्वागतके बहिष्कार तथा सार्वजनिक सभाएँ करनेके अधिकार अथवा स्वयंसेवक दल या अन्य संगठनोंके विषयमें कोई सम्मेलन तबतक न किया जाना चाहिए जबतक कि उनका उद्देश्य हिंसा करना न हो। स्वागतका बहिष्कार तो रुक नहीं सकता और तबतक रुकना भी नहीं चाहिए, जबतक कि जनताकी इच्छाएँ, सार्वजनिक सभाएँ तथा संस्थाएँ पद-दलित की जायें और ये तो हमारे ऐसे बुनियादी अधिकार हैं जिनके विषयमें किसी प्रकारकी वार्ता चलानेकी जरूरत ही नहीं। हमें उन अधिकारोंके लिए लड़ना ही होगा।

साथ ही यह भी ध्यान रहे कि असहयोगी अभी उस प्रकारकी सविनय अवज्ञा नहीं कर रहे हैं जैसी कि वे चाहते थे। सार्वजनिक सभाएँ करने तथा शान्तिमय स्वयंसेवक-संगठन बनानेका वे जो आग्रह कर रहे हैं उसे सविनय अवज्ञाके नामसे विभूषित न करना चाहिए। असहयोगी तो अभी सिर्फ बचावमें ही लगे हुए। अभी उन्होंने आक्रामक स्वरूप तो आरम्भ भी नहीं किया है, जो कि पूरी तरहसे अहिंसात्मक वातावरण बन जानेपर वे करनेवाले हैं। सरकारने उन्हें अपनी शक्तिकी परीक्षाका यह मौका देकर उनपर अनुग्रह ही किया है।

२० दिसम्बर

धरना देनेका अधिकार

बम्बईवालों ने शराब की दुकानोंपर अपना धरना बन्द कर दिया है। यह देखकर सरकारने सोचा होगा कि और तमाम जगहोंपर भी ऐसा ही होगा। लेकिन पूनाने यह दिखला दिया है कि धरना देना हमारा हक है और बिना उचित कारणोंके उसे छोड़ा नहीं जा सकता। वहाँ धरना देनेकी मनाहीका हुक्म निकलते ही 'केसरी' के सम्पादक श्री केलकर[१] लिखते हैं:

आज सुबह जिला मजिस्ट्रेटको नोटिस दे दिया गया है कि हम फलाँ जगह फलाँ वक्तपर जाकर आज ही आपकी आज्ञा भंग करेंगे। पहली टुकड़ीमें में, मेरा पुत्र और सर्वश्री भोपटकर[२], गोखले[३], परांजपे[४] तथा १५-१६ दूसरे

  1. नरसिंह चिन्तामण केलकर (१८७२-१९४७); महाराष्ट्र के राजनीतिक नेता; लेखक और पत्रकार; तिलकके निकटवर्ती साथी।
  2. लोकसंग्रहके सम्पादक।
  3. मराठाके सम्पादक।
  4. स्वराज्यके सम्पादक।