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सम्पूर्ण गांधी वाङ्‍मय


इसलिए मेरा तो खयाल है कि ऐसे सम्मेलनसे जिसमें सरकार के भी प्रतिनिधि हों, लाभ तभी होगा जब वह जी भरकर असहयोगियोंकी संख्या और उनकी क्षमताकी जाँच कर चुकेगी और उनकी कड़ी परीक्षा ले चुकेगी।

किन्तु असहयोग लोकमत तैयार करनेका एक उपाय है। इसलिए यदि सहयोगी और असहयोगियोंका सम्मेलन हो तो मैं जरूर उसका स्वागत करूँगा। मुझे यकीन है कि वे भी खिलाफत और पंजाब के अन्यायों और अत्याचारोंका प्रतिकार चाहते हैं। मैं यह भी जानता हूँ कि जैसे असहयोगी देशके लिए स्वतन्त्रता चाहते हैं, वैसे ही वे भी चाहते हैं। सरकारकी इस दमन-नीतिकी भर्त्सना करीब-करीब सभी नरमदलीय समाचारपत्रोंने की है। यह देखकर मुझे बड़ा सन्तोष हुआ। इससे कमकी मैंने आशा भी नहीं की थी। मैं कह सकता हूँ कि यदि असहयोगी आत्मसंयमी बने रहें, हिंसासे दूर रहें, अपने विरोधियोंके प्रति दुर्वचनोंका प्रयोग न करें, तो हर सहयोगी असहयोगी हुए बिना न रहेगा। यही क्यों, अंग्रेज भाई भी असहयोगियोंके दलमें आ मिलेंगे और सरकारको हमारी शरण लेनी पड़ेगी; वह इसके सिवा और कर ही क्या सकती है। असहयोगकी इस विधिका परिणाम यही हो सकता है। इसी उद्देश्यसे वह आरम्भ भी किया गया है और उम्मीद है कि यही होगा भी। यह विधि टकरावकी सम्भावनाको कमसे कम कर देती है और यदि आज उसका परिणाम विपरीत दिखाई दे रहा हो, तो उसका कारण यही है कि असहयोगी सिर्फ अभी-अभी यह मानने लगे हैं कि केवल कार्यमें ही अहिंसा होना काफी नहीं, वाणी और विचारोंका भी अहिंसात्मक होना उतना ही आवश्यक है। असहयोगीके लिए शत्रुके प्रति भी बुरे भावोंको दिलमें आने देना अनुचित है। हमारे विरोधियोंको सबसे भारी आशंका तो यही है कि इस अहिंसा के आचरण में अनियन्त्रित हिंसा भड़क उठनेकी सम्भावना छिपी हुई है। उन्हें हमारी, अर्थात् हममें से अधिकतर लोगोंकी, हृदयकी शुद्धिपर विश्वास नहीं है। उन्हें तो उसमें अव्यवस्था और सर्वनाशके सिवा कुछ दिखाई ही नहीं देता। इसलिए यह दमन तो एक तरहसे हमें ईश्वरीय वरदानके रूपमें मिला है। यह उनको और हमको दोनोंको दिखा रहा है कि जनतापर हमारा इतना असर हो गया है कि उत्तेजित कर देने लायक परिस्थितिमें भी हम उसे शान्त रख सकते हैं। किन्तु हमारे इस संयमकी अभी इतने अधिक समयतक परीक्षा नहीं ली गई है जिससे हम यह समझ लें कि यह शान्ति हमेशा ऐसी ही रह सकेगी। अब भी हमारे दिलमें धुकधुकी लगी ही रहती है। सियालकोटके लोगोंने आखिर यह रास्ता छोड़ ही दिया—फिर यह चाहे जितने छोटे पैमानेपर ही क्यों न हो। ऐसी छोटी-छोटी कितनी ही गलतियाँ हमसे हो चुकी हैं, जिनसे मालूम होता है कि हमारे अन्दर अभी सुरक्षाका भाव इस हदतक पैदा नहीं हुआ है जिससे बाहरी आदमीके हृदयपर भी उसका प्रभाव पड़े और उसके चित्तमें इस आन्दोलनके प्रति विश्वास और श्रद्धा उत्पन्न हो जाये। इसलिए मैं निष्पक्षताके आधारपर या असहयोगियोंकी सदाशयता सिद्ध करनेके लिए सहयोगियोंसे मुलाकात करनेके हर अवसरका स्वागत करूँगा। सरकारने खुद असहयोगको ही दबानेका इरादा जाहिर करके अपने सच्चे स्वरूपको अधिक स्पष्टतः