पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 22.pdf/९४

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
७०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्‍मय

कार्रवाइयाँ हैं ताकि स्वस्थ सार्वजनिक जीवनको नष्ट करके जनताकी हिंसात्मक प्रवृत्तिको उभारा जा सके और फिर जलियाँवाला बागका और भी व्यापक संस्करण प्रस्तुत किया जा सके। अच्छीसे-अच्छी मंशा लेकर उपर्युक्त घटनाक्रमपर उदारसे उदार दृष्टिसे विचार करनेके बाद भी अन्य किसी निष्कर्षपर पहुँचना मेरे लिए सम्भव ही नहीं हुआ।

वाइसरायका दायित्व

आज भारतवर्ष में हिन्दुस्तानियोंको सदाके लिए पौरुषहीन कर डालनेकी जो साजिश चल रही है उसमें, मुझे शक होता है कि लॉर्ड रीडिंग भी शामिल हैं। पर एक मित्रने एक दूसरी बात सुझाई है। वे कहते हैं कि हाँ, लॉर्ड रीडिंग उन धमकियोंके लिए तो जरूर जिम्मेवार हैं जो हाल ही में उन्होंने अपने भाषणके द्वारा दी हैं; परन्तु उन्हें इस बातकी खबर नहीं होगी कि उनके मातहत अधिकारी इस तरह कानून कायदेका खून कर डालेंगे, या शायद उनका कुछ बस न चला हो उनकी इस इच्छाकी कि कानूनकी मर्यादाका उल्लंघन जरा भी न किया जाये, नीचेके अधिकारियोंने परवाह न की हो। लेकिन मैं इन दोनों बातोंको नहीं मान सकता। लॉर्ड रीडिंग यदि लोगों द्वारा कानूनकी खिलाफवर्जीको कानूनी तरीकोंसे दबानेका प्रयत्न कर रहे हों तो उन्हें अपने इस अभियानकी गतिविधिका—जिसे वे 'दमन' तक नहीं कहने देना चाहते—अच्छी तरह मनन करें और उसे विधिवत् चलायें। दमनमें उनके मातहत अफसरोंका स्वार्थ है। अतएव यदि वे उनके हाथसे निकल गये हों, तो लॉर्ड रीडिंगको तुरन्त इस्तीफा दे देना चाहिए। कमसे कम वे जाहिरा तौरपर ऐसी बेकायदा करतूतों और मार-पीट तथा हमलोंकी निन्दा अवश्य करें और "कठिन समयकी" दुहाई देकर उनके बचावकी कोशिश तो हरगिज न करें। इस सम्बन्धमें एक बात मैंने सोची है। हाँ, वाइसराय महोदय हमारी उच्च आकांक्षाओंसे हमदर्दी रखते हैं। वे अपने देशभाइयोंकी स्थितिसे ख़ूब वाकिफ हैं। अतएव वे इस बातकी आवश्यकता समझते हैं कि सुलह करनेके पहले हमारी खूब कड़ी परीक्षा कर देखें। सो वे कठोर दमनका प्रयोग करके यह जाँच लेना चाहते हैं कि हम उसे कहाँतक सहनेको तैयार हैं, अर्थात् आजाद होनेकी हमारी इच्छा कहाँतक सच है। इस तरह वे बतौर हमारे वकीलके अपने मुवक्किलका पक्ष मजबूत करके फिर किसी निबटारेपर आना चाहते हैं। तथापि मुझे अन्देशा है कि बात ऐसी नहीं हो सकती। मनुष्य-स्वभावकी यह रीति नहीं है। लॉर्ड रीडिंग सोलह आना स्वार्थसे बिलकुल खाली नहीं हैं। और यदि वे ऐसे हों तो ऐसी सरकारके यहाँ ठहर ही नहीं सकते जिसके वर्तमान गठनके अन्तर्गत प्रजाके दुःख दूर हो ही नहीं सकते। अतएव मुझे अपनी इच्छा के सर्वथा विपरीत यह निष्कर्ष निकालनेपर बाध्य होना पड़ता है कि लॉर्ड रीडिंग इस तरह भाषण स्वातन्त्र्य तथा लोक-संस्थाओंका बलपूर्वक गला घोटकर भारतवर्षको पौरुषहीन करनेका प्रयत्न कर रहे हैं। हाँ, मैं यह माननेको तैयार हूँ कि वे जो कुछ कर रहे हैं वह यही समझकर कि इसमें हमारा भला है और अभी हम सच्चे पुरुष और स्त्री कहलाने योग्य नहीं हुए हैं। पर लॉर्ड रीडिंगकी आँखें शीघ्र ही खुल जायेंगी। वे जो चाहें सो माना