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सम्पूर्ण गांधी वाङ्‍मय

दण्ड संहिताको धारा १२४ क अथवा १५३ क के अधीन अपराध करते हैं। इसलिए पुलिस अधिकारियोंको, कानूनको सीमामें रहते हुए, इस अपराधको रोकनके लिए हर सम्भव उपाय करना चाहिए।

इस सबके अन्तमें मजाक यह रहा कि इन अधिसूचनाओंसे लैस होकर बेलगांवके एक ताल्लुके बेलहोंगलका सब-इंस्पेक्टर उस समय वाकई जिला कांग्रेस कमेटीके एक मंत्रीका मुँह बन्द करने पहुँच गया, जब वे बेलहोंगलमें एक सभामें भाषण करनेके लिए खड़े हुए। घटनाका विवरण मन्त्रीके शब्दोंमें ही लीजिए:

…जब मैं सभा में बोलनेके लिए उठा, तो पुलिस सब-इंस्पेक्टर मेरे सामने आ खड़ा हुआ और मुझसे कहने लगा कि में न बोलूं। माँगनेपर उसने कोई लिखित आदेश तो नहीं दिया, लेकिन उपर्युक्त परिपत्र संख्या ६३५९ दिखाया। उसने मुझसे यह भी कहा कि यदि मैंने जिद करके बोलनेकी कोशिश की तो वह हाथ रखकर मेरा मुँह बन्द कर देगा। …यह बड़ी अनोखी बात थी। …मैंने वह आदेश मान लिया और मैं बोला नहीं। स्थानीय मजिस्ट्रेट और मामलतदार इस वाकयके समय पूरे वक्त वहाँ मौजूद थे।…

लीजिए, इलाहाबादकी घटनाओंका संक्षिप्त विवरण देकर मैं इस वीभत्स चित्रको पूरा किये देता हूँ:

पिछली २५ नवम्बरको सरकारने एक असाधारण गजट निकालकर १९०८के दण्डविधि संशोधन अधिनियमको संयुक्त प्रान्तपर लागू कर दिया और विदेशी कपड़े के बहिष्कार, धरना देने अथवा युवराजको यात्राके बहिष्कारको अपना उद्देश्य मानकर चलनेवाले खिलाफत, कांग्रेस तथा वैसी ही अन्य संस्थाओंके स्वयंसेवक दलोंको अवैध संगठन घोषित कर दिया।

उसी दिन, पहलेसे घोषित कार्यक्रमके अनुसार, प्रान्तीय कांग्रेस कमेटीकी बैठक हुई जिसमें कार्य समिति द्वारा निर्धारित रूपरेखाके अनुरूप स्वयंसेवक बोर्डकी स्थापना करनेका निश्चय किया गया। एक शपथ-पत्रका मसौदा तैयार किया गया और सभामें उपस्थित ७५ व्यक्तियोंने स्वयंसेवकोंके रूपमें उसपर हस्ताक्षर कर दिये। लखनऊके पण्डित हरकरननाथ मिश्र, जो एक सभामें भाषण करने लखीमपुर गये हुए थे, सरकारी आक्रोशके पहले शिकार बने। इसके बाद ६ दिसम्बर को सबेरे-सबेरे लखनऊ में मौलाना खलीकुज्जमा और खिलाफत तथा कांग्रेस कमेटियोंके अन्य लोगोंको गिरफ्तार कर लिया गया। उसी दिन शामको पण्डित मोतीलाल नेहरू, पण्डित जवाहरलाल नेहरू[१], पुरुषोत्तमदास टण्डन[२] और

  1. १८८९-१९६४, राजनीतिज्ञ और लेखक; भारतके पहले प्रधान मन्त्री, १९४७-१९६४; भारतरत्न; विश्व इतिहासकी झलक और मेरी कहानी आदिके रचयिता।
  2. १८८२-१९६२; उत्तर प्रदेशके प्रसिद्ध वकील और नेता; हिन्दी साहित्य सम्मेलनके संस्थापक; १९५० में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस सभापति; भारतरत्न। उस समय वे इलाहाबाद नगरपालिकाके अध्यक्ष थे।